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श्रमण, वर्ष ५८, अंक ४ अक्टूबर-दिसम्बर २००७
साहित्य सत्कार
पुस्तक समीक्षा पुस्तक- पंच-प्रतिक्रमण सत्र, लेखिका-डॉ० साध्वी सुरेखाश्री, प्रकाशक-विचक्षण स्मृति प्रकाशन, संस्करण-प्रथम २००६, ई० सन्, पृ०-१८+२२०= २३८, आकारडिमाई, मूल्य-१०.०० रु०।
पंच प्रतिक्रमण सूत्र एक ऐसी कृति है जिसको मूल के साथ-साथ हिन्दी व अंग्रेजी भाषा में प्रस्तुत किया गया है। वर्तमान युग में आंग्ल भाषा के बढ़ते क्षेत्र को देखते हुए इसका प्रणयन अत्यन्त उपयोगी है। सुखी जीवन के लिए भौतिक पदार्थों की नहीं अपितु आत्मिक सुख की जरूरत है। आत्मिक सुख तभी प्राप्त हो सकता है जब व्यक्ति की आत्मा शुद्ध हो। आत्मशुद्धि के लिए ही प्रस्तुत कृति में छः आवश्यक क्रियाओं का वर्णन किया गया है। आवश्यक क्रिया का अर्थ ही है- अवश्य करने योग्य क्रिया। इन क्रियाओं को सभी को प्रतिदिन करना चाहिए। छः आवश्यक क्रियाएँ हैं- सामायिक, चतुर्विंशतिस्तव, वंदन, प्रतिक्रमण, कायोत्सर्ग और प्रत्याख्यान। इन छ: आवश्यकों की साधना से ही व्यक्ति अपने कर्मों का क्षय कर पाता है। कर्मों का क्षय होने पर ही आत्मस्वरूप की प्राप्ति हो सकती है। कृति के प्रारम्भ में वर्णमाला लिप्यंतरण (Transliteration of Alphabet) चार्ट दिया है ताकि पाठकों को अध्ययन में सुविधा हो। पुस्तक के प्रारम्भ में प्रतिक्रमण की मुद्राओं का चित्र देकर लेखिका ने पुस्तक को और अधिक उपयोगी बना दिया है। यह पुस्तक हिन्दी भाषी पाठकों के साथ-साथ अंग्रेजी भाषी पाठकों के लिए ज्यादा उपयोगी सिद्ध होगी, क्योंकि आज अंग्रेजी भाषा का वर्चस्व है। सुन्दर अक्षर-सज्जा के साथ प्रस्तुत कृति प्रत्येक वर्ग के लिए पठनीय एवं संग्रहणीय है।
डॉ० सुधा जैन वरिष्ठ प्राध्यापक
पार्श्वनाथ विद्यापीठ पुस्तक- ध्यान पथ, लेखक- आचार्य शिवमुनि, प्रकाशक- मेहता पब्लिशर्स, दिल्ली- २८ संस्करण- तृतीय, पृष्ठ सं०- १७६, मूल्य- ९५ रुपये।
प्रस्तुत ग्रन्थ को आचार्य शिवमुनि जी, जो जैन परम्परा के समुज्ज्वल नक्षत्र हैं, की सर्जन-यात्रा ने अपनी अमूर्त अनुभूतियों को विचार के माध्यम से मनोज्ञ एवं