Book Title: Sramana 2007 10
Author(s): Shreeprakash Pandey, Vijay Kumar
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 191
________________ गाहा __ अह सा सहि-यण सहिया कमेण निय-पुर-वरं पविठ्ठत्ति । चित्तगईवि य तीए जोव्वण-रूवेहिं हय-हियओ ।।१६१।। चित्त-लिहिउ व्व जाओ खणंतरं विगय-अन्न-वावारो। तं दटुं दमघोसो सविणयमेवं समुल्लवइ ।।१६२।।युग्मम्।। संस्कृत छाया अथ सा सखीजनसहिता क्रमेण निजपुरवरं प्रविष्टेति। चित्रगतिरपि च तस्या यौवनरूपाभ्यां हतहृदयः ।। १६१।। चित्रलिखित इव जातः क्षणान्तरं विगताऽन्य-व्यापारः । तं दृष्ट्वा दमघोषः सविनयमेवं समुल्लपति ।। १६२।। युग्मम्।। गुजराती अर्थ-- हवे ते सखीजन सहित क्रमपूर्वक पोनाना नगर मां प्रवेशी, अने चित्रगति पण तेणी ना यौवन अने छप वड़े हणायेला हृदयवाळो चित्रमा आलेखायेल नी जेम निश्चल थयो, व्यापारशून्य एवा तेने जोई ने एक क्षण पछी दमघोषे विनयपूर्वक आ प्रमाणे कहो। हिन्दी अनुवाद__अब वह सखिजन के सहित, क्रम से अपने गाँव में आयी और यहाँ चित्रगति भी उनके रूप और यौवन से आकृष्ट चित्तवाला चित्र में चित्रित की तरह निश्चल हो गया। व्यापार शून्य उसे देखकर एक क्षण के बाद दमघोष ने विनयपूर्वक इस प्रकार कहा । गाहा अत्थ-गिरि-सिहरमणुसरइ दिणयरो एस वियलिय-पयावो । ता गम्मउ निय- ठाणे कुमार! किमिणा विलंबेण? ।।१६३।। संस्कृत छाया अस्तगिरिशिखरमनुसरति दिनकर एष विगलितप्रतापः । तस्माद् गम्यतां निजस्थाने कुमार! किमनेन विलम्बेन? ।। १६३।। गुजराती अर्थ गळी गयेला प्रतापवाळो आ सूर्य पण अस्तगिरि ना शिखर ने अनुसरे । छे. हे कुमार! तेथी स्व स्थाने जईस अहीं विलम्ब करवा वड़े सयु। 283

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