Book Title: Sramana 2007 10
Author(s): Shreeprakash Pandey, Vijay Kumar
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

View full book text
Previous | Next

Page 221
________________ गाहा तं जं तुमए पुढे कह णु तुमं भद्द! नियय-दइयाए । ठाणंपि नेय जाणसि तं सव्वं साहियं एयं ।। २३३।। संस्कृत छाया तद् यद् त्वया पृष्टं कथं नु त्वं भद्र! निजदयितायाः । स्थानमपि नैव जानासि तत्सर्वं कथित-मेतद् ।। २३३।। गुजराती अर्थ ते जे मने पूछयु के हे अद्र! तूं तारी पत्नी नुं स्थान पण शुं जाणतो नथी? तेथी आ सर्व में तने-कहो। हिन्दी अनुवाद तुमने मुझे पूछा कि हे भद्र! तु तेरी प्रिया का स्थान भी क्यों नहीं जानता है? अत: मैंने तुझे यह सब कहा। गाहा तो दुलहं मणुयत्तं दणं रूव-जोव्वण-समेयं । महिलामित्तस्स कए न हु मरणं होइ कायव्वं ।। २३४।। संस्कृत छाया ततो दुर्लभं मनुजत्वं दृष्ट्वा रूपयौवन-समेतम् । महिला- मात्रस्य कृते न खलु मरणं भवति कर्तव्यम् ।। २३४।। . गुजराती अर्थ आथी छप-यौवन युक्त दुर्लभ एवा मनुष्य अव ने जोईने (जाणीने) मार स्त्री ने माटे मरवू योग्य नथी। हिन्दी अनुवाद अत: रूप यौवन से युक्त दुर्लभ ऐसे मनुष्य भव को प्राप्त करके महिला मात्र के लिए मरना योग्य नहीं है। गाहा भो चित्तवेग! जइवि हु पिय-विरहे दूसहं हवइ दुक्खं । उत्तम-कुल-प्पसूयाण तहवि एयं न जुत्तंति ।। २३५।। 313

Loading...

Page Navigation
1 ... 219 220 221 222 223 224 225 226 227 228 229 230