Book Title: Sramana 2007 10
Author(s): Shreeprakash Pandey, Vijay Kumar
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

View full book text
Previous | Next

Page 226
________________ संस्कृत छाया अथ तस्या- मागतायां नेपथ्यं तस्याः सत्कमहम् । गृहीत्वा स्त्रीरूपो गमिष्यामि वरपार्श्वे ।। २४४।। गुजराती अर्थ पछी तेणी आवे छते तेणीनां वस्त्रादि ने हुं ग्रहण करीने स्त्रीरुपे हुं वरनी पासे जईश । हिन्दी अनुवाद जाउंगा। गाहा फिर उसके आने पर उनकी पोशाक लेकर स्त्रीरूप में मैं वर के पास धित्तूण कणगमालं तं पुण नासिज्ज तक्खणा चेव । अहयंपि उपाएणं नासिस्सं लद्ध- पत्यावो ।। २४५ ।। संस्कृत छाया गृहीत्वा कनकमालां तां पुनर्नश्येः तत्क्षणादेव । अहमप्युपायेन नंक्ष्यामि लब्ध प्रस्तावः ।। २४५।। गुजराती अर्थ तुं कनकमाला लईने ते ज क्षणे त्यांथी भागी जजे- अने हुं पण कोई पण उपायवड़े मेळवेला अवसरवाळो भागी जईश । हिन्दी अनुवाद तुम कनकमाला को लेकर उसी क्षण भाग जाना, और मैं भी कोई उपाय द्वारा अवसर आने पर भाग जाऊंगा। गाहा एवं हि कए तीए संपत्ती अत्थि, नन्नहा भद्द ! | तह देवयाए वयणं होज्जा एवं च सच्चति ।। २४६ ।। संस्कृत छाया एवं हि कृते तस्याः सम्प्राप्तिरस्ति नान्यथा भद्र! | तथा देवताया वचनं भवेदेवं च सत्यमिति ।। २४६ ।। 318

Loading...

Page Navigation
1 ... 224 225 226 227 228 229 230