Book Title: Sramana 2007 10
Author(s): Shreeprakash Pandey, Vijay Kumar
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 222
________________ संस्कृत छाया भोश्चित्रवेग! यद्यपि खलु प्रियविरहे दुस्सहं भवति दुःखम् । उत्तमकुलप्रसूतानां तथाप्येतन्न युक्तमिति ।। २३५।। गुजराती अर्थ हे! चित्रवेग। जो के प्रिय ना विरह मां असह्य दुःख थाय छे तो पण उत्तमकुलमां उत्पन्न थयेला ने आ योग्य नथी। हिन्दी अनुवाद हे चित्रवेग! यद्यपि प्रियविरह का दुःख असह्य होता है, फिर भी उत्तमकुल में उत्पन्न हुए को यह योग्य नहीं है। गाहा जाणामि अहंपि इमं मण-वल्लह-माणुसस्स विरहम्मि । नरए नेरइयस्स व उप्पज्जइ दारुणं दुक्खं ।। २३६।। संस्कृत छाया जानाम्यहमपीदं मनोवल्लभ-मानुषस्य विरहे । नरके नैरयिकस्येवोत्पद्यते दारुणं दुःखम् ।। २३६ ।। गुजराती अर्थ हुं पण जाणु, छु. के मनो-वाञ्छित मनुष्य ना विरह मां नरक मां रहेला नारकीओ जेवु दुःख उत्पन्न थाय छ। हिन्दी अनुवाद मैं भी जानता हूँ कि मनोवाञ्छित मनुष्य के विरह में नरक में रहे नारकी के जैसा दुःख उत्पन्न होता है। गाहा तहवि हु न होइ जुत्तो अप- वहो किंतु कोवि हु उवाओ । चिंतेयव्वो जह सा पाविज्जइ हियय-वल्लहिया ।। २३७।। संस्कृत छाया तथापि खलु न भवति युक्त आत्मवधः किन्तु कोऽपि खलूपायः । चिन्तितव्यो यथा सा प्राप्यते हृदयवल्लभिका ।।२३७।। 314

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