Book Title: Sramana 2007 10
Author(s): Shreeprakash Pandey, Vijay Kumar
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 206
________________ हिन्दी अनुवाद इस प्रकार की हकीकत जानकर सभी (नगर जन) क्षुभित हुए तथा भयभीत एवं अनाथ हुएं (जानकर) इस प्रकार बोलने लगे। गाहा अम्हाण पहू नट्ठो न य सक्कइ वासिउं पुरं एयं । तेण विणा ता अम्हं न जुत्तमिह अच्छिउं इहि ।।१९८।। संस्कृत छाया अस्माकं प्रभु नष्टो न च शक्यते वासयितुं पुर-मेतद् । तेन विना तस्मादस्माकं न युक्तमत्र-आसितुमिदानीम् ।।१९८।। गुजराती अर्थ आपणा स्वामी जता रहयां छे हवे आ नगर वसाववु शक्य नथी तेथी अत्यारे ते स्वामि रहित आपणे अहीं रहेवू योग्य नथी। हिन्दी अनुवाद अपने स्वामी चले गये हैं, अत: अब यह नगर बसाना उचित नहीं है। इस हेतु से स्वामी रहित अपने को यहाँ रहना ठीक नहीं है। गाहा को कणइ अम्ह रक्खं एत्थ वसंताण नाह-रहियाण । सव्वेसिं तेण उचियं पुरमेयं उज्झिउं सिग्धं ।।१९९।। संस्कृत छाया कः करोत्यस्माकं रक्षा-मत्र वसतां नाथरहितानाम् । सर्वेषां तेनोचितं पुरमेतदुज्झितुं शीघ्रम् ।।१९९।। गुजराती अर्थ नाथरहित रहेता आपणी अहींया कोण रक्षा करे? तेथी बधाए आ नगर नो जल्दीथी त्याग करवो योग्य छ। हिन्दी अनुवाद अनाथ जैसे अपनी यहाँ कौन रक्षा करेगा? अत: जल्दी से यह नगर सभी को छोड़ना चाहिए। गाहा एवं विणिच्छियम्मी (म्मि?) नयर- महंतेहिं मंत-कुसलेहिं । सव्वोवि जणो नट्ठो जायं अह सुन्नयं नयरं ।। २०० ।। 298

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