Book Title: Sramana 2007 10
Author(s): Shreeprakash Pandey, Vijay Kumar
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 207
________________ । संस्कृत छाया एवं विनिश्चिते नगर- महद्भिर्मन्त्रकुशलैः । सर्वोऽपि जनो नष्टो जातमथ शून्यकं नगरम् ।। २०० ।। गुजराती अर्थ ___आ प्रमाणे सज्जनो तथा मन्चकुशल (विचारवामांकुशल) पुरुषोए निश्चय कर्ये छते चधा ज लोको जता रहयां, आथी आ नगर शून्य छ। हिन्दी अनुवाद ___ इस प्रकार सज्जन और मन्त्रकुशल लोगों द्वारा परस्पर निश्चय करने पर सभी लोग चले गये। इसीलिए यह नगर शून्य हो गया है। गाहा आसज्ज कारणमिणं उव्वसियं तेण पुर-वरं एयं । चित्तगई भणइ तओ कत्थ गओ सो जणो भद्द! ।। २०१। संस्कृत छाया आसाद्य' कारणमिद- मुदुषितं तेन पुरवर- मेतद् । चित्रगतिर्भणति ततः कुत्र गतः स जनो भद्र! ।। २०१।। गुजराती अर्थ उज्जड़ बनेला नगर , कारण तेनी पासे थी जाणीने चित्रगति कहे छे. हे अद्र! ते लोको क्या गया? हिन्दी अनुवाद ऊजड़ हुए नगर का वर्णन उनके पास से जानकर चित्रगति ने कहा'हे भद्र! बाद में वे सभी लोग कहाँ गये? गाहा तत्तो य तेण भणियं कोवि जणो गयण-वल्लहे नयरे । कोवि गओ विजयपुरे कोवि हु इह वेजयंतम्मि ।। २०२।। संस्कृत छाया ततश्च तेन भणितं कोऽपि जनो गगनवल्लभे नगरे । कोऽपि गतो विजयपुरे कोऽपि खल्विह वैजयन्ते ।। २०२।। 299

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