Book Title: Sramana 2007 10
Author(s): Shreeprakash Pandey, Vijay Kumar
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 178
________________ हिन्दी अनुवाद अत: विद्या ने कहा- 'हे पुत्र ! सम्पूर्ण वृत्तान्त को आप सुनिए ? ऐसा कहकर प्रज्ञप्ति ने केवली भगवंत द्वारा कहे गये सभी वृत्तान्त कह सुनाया । और वापिस कहा- वह कनकप्रभ तुझे क्षुभित करने के लिए ही यहाँ आया था और उसने ही यह सब माया की । गाहातुह महिला निय-गेहे अच्छइ निरुवद्दवा सुहेणं तु । चित्तगई पुण तेणं विमोहिओ मोहणि-पभावा ।।१२८।। सुरनंदणम्मि नयरे जिणिंद-भवणम्मि अच्छइ निविट्ठो। ता मा काहिसि किंचिवि एत्थत्थे पुत्त! उव्वेवं ।। १२९।।युग्मम्।। संस्कृत छाया तव महिला निजगेहे आस्ते निरुपद्रवा सुखेन तु। . चित्रगतिः पुनस्तेन विमोहितो मोहनी-प्रभावात् ।। १२८।। सुरनन्दने नगरे जिनेन्द्रभवने आस्ते निविष्टः । तस्माद् मा करिष्यसि किञ्चिदाप्यत्रार्थे पुत्र! उद्वेगम् ।। १२९।। युग्मम्।। गुजराती अर्थ तारी पत्नी उपद्रव वगरनी सुखपूर्वक पोताना घरे छे. वळी चित्रगति पण मोहिनी विद्या ना प्रभाव थी मूढ चनेल, सुरनंदन नगर ना जिनभवन मां बेठेलो छे. माटे आ कारण थी हे पुर! तुं जरा पण उद्वेग ने धारण करीश नहि! हिन्दी अनुवाद तेरी पत्नी निरूपद्रव आनन्दपूर्वक स्वयं के घर में ही है तथा चित्रगति भी मोहिनी विद्या के प्रभाव से मूढ चित्तवाला सुरनन्दन नगर के जिनभवन में बैठा है, अत: इस हेतु से हे पुत्र! तू तनिक भी उद्विग्न मत बनना । गाहा एवं भणिउं विज्जा अदंसणं झत्ति उवगया ताहे । अहयं जलणपहेणं पट्टविओ तुम्ह पासम्मि ।। १३० ।। 270

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