Book Title: Sramana 2007 10
Author(s): Shreeprakash Pandey, Vijay Kumar
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

View full book text
Previous | Next

Page 187
________________ संस्कृत छाया ततश्चोत्तरीयक- मृदुपवनाऽऽश्वासितया स तया । लज्जा- साध्वसमुकुलित- नयनाभ्यां गुजराती अर्थ त्यार पछी उत्तरीय वस्त्र वड़े विज्ञाता कोमल पवन द्वारा ते आश्वस्त ये छते लज्जा अने भययुक्त नयनो वड़े जोवा लागी । हिन्दी अनुवाद तत्पश्चात् उत्तरीय वस्त्र द्वारा हलका सा पवन डालने पर आश्वस्त होने पर लज्जा और भययुक्त नयनों से देखने लगी । गाहा दृष्टस्ततः ।। १५१ । । चिय- परिचियं व दद्धुं तं तरुणं गरुय - नेह- सब्भावा । अमएण व संसित्ता जाया अह वियसिय- कवोला ।। १५२ ।। संस्कृत छाया चित्तपरिचितमिव दृष्टवा तं तरुणं गुरुकस्नेहसद्भावात् । अमृतेनेव संसिक्ता जाताऽथ विकसितकपोला । । १५२ । । गुजराती अर्थ लांचा काळ थी परिचित जाणे न होय तेम ते तरुण ने जोईने अतिस्नेह ना सद्भाव थी जाणे अमृत वड़े सिंचाई होय तेम विकसित गालोवाळी थई । हिन्दी अनुवाद लंबे काल से परिचित हो, ऐसा उस तरुण को देखकर अतिस्नेह और सद्भाव से अमृत द्वारा सिञ्चित हुई हो, ऐसे विकसित गालोवाली हुई । गाहा चित्तगईवि य तीए दट्ठूण अणोवमं तयं रूवं । तव्वयण-निसिय-निष्कंद- लोयणो चिट्ठई जाव ।। १५३ ।। ताव य तीए धाई कड़वय- जुवईहिं परिगया झत्ति । आगंतुं उवविट्ठा भणइ तयं महुर वाणीए ।। १५४ । । युग्मम् । । संस्कृत छाया चित्रगतिरपि च तस्या दृष्ट्वाऽनुपमं तद्वदन- निश्रित- निष्पन्दलोचनस्तिष्ठति 279 - तद्रूपम् । यावद् ।। १५३ । ।

Loading...

Page Navigation
1 ... 185 186 187 188 189 190 191 192 193 194 195 196 197 198 199 200 201 202 203 204 205 206 207 208 209 210 211 212 213 214 215 216 217 218 219 220 221 222 223 224 225 226 227 228 229 230