Book Title: Sramana 1995 07 Author(s): Ashok Kumar Singh Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi View full book textPage 8
________________ श्रमण/जुलाई-सितम्बर/१९९५ व्यवहार में अहिंसा, आर्थिक जीवन में अपरिग्रह और उपभोग में संयम के सिद्धान्त के रूप में मानवता के कल्याण का जो मार्ग प्रस्तुत किया था, वह आज भी उतना ही प्रासंगिक है, जितना कि आज से २५०० वर्ष पूर्व था । आज भी अहिंसा, अनेकान्त और अपरिग्रह की यह त्रिवेणी मानव-जाति के कल्मषों को धो डालने के लिए उतनी ही उपयोगी है जितनी महावीर के युग में थी । ६ + आज मात्र वैयक्तिक स्तर पर ही नहीं सामाजिक स्तर पर भी अहिंसा, अनेकान्त और अपरिग्रह की साधना करनी होगी, तभी हम एक समतामूलक समाज की रचना कर मानव जाति को सन्त्रासों से मुक्ति दिला सकेंगे और यही महावीर के प्रति हमारी सच्ची श्रद्धांजलि होगी। Jain Education International • निदेशक पार्श्वनाथ विद्यापीठ, वाराणसी । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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