Book Title: Silopadesamala Balavbodh
Author(s): Merusundar Gani, H C Bhayani, R M Shah, Gitaben
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 17
________________ शोलोपदेशमाला-बालासबोध शीलभ्रष्टर्नु उदाहरण३६. कूलवालूआनी कथा १३७-१३९ सती चरित्र३७ द्रुपदीनी कथा १४०-१४२ असतीनी कथा ३८ नूपुरपंडितानु दृष्टांत १४३-१४८ ३९ दत्तदुहितानी कथा १४८-१५० ४० अगडदत्त ( मदनमंजरी )नी कथा १५४-१६१ ४१ प्रदेशी राजा (नी राणी)नो कथा १६१-१६२ सती चरित्र४२. सीतानी कथा १६७-१७८ ४३. धनश्रीन दृष्टांत १७९-१८२ आमांनी केटलीक कथाओना मूळ जैन आगमो के आगमोनी र्णि, नियुक्ति आदि टीकाओमां रहेलां छे उदा० रथनेमिनी कथा उत्तराध्ययन सूत्रमा अने प्रदेशी राजानी कथा रायपसेगइय नामक आसमां मळे छ केट लीक कथाओ जैन पौराणिक साहित्यमाथी लेवामां आवी छे. उदा. सीतानी कथः, नेमिनाथ - चरित्र आदि. तो केटलीक कथाओ वसुदेवहिंडी ( श्रादत, नर्म र पुदी, ऋषिदत्ता आदि कथा ओ), समराश्च्च कहा ( धनश्रीनु दृष्टांत) जेवा प्राकृत कथा ग्रंथोमांथी लेवामां आवी छे. ___मूळ प्राचीन साहित्यमा मात्र नाम निदेश होय तेवा केटलाय दृष्टांतो पाछळना साहित्यमा पल्लवित थतां थतां लांबी कथानु रूप धारण करे छे. आवा कथा-विकासन, आलेखन एक स्वतन्त्र संशोधननो विषय छे. आगळ नोंध्युं छे तेन शीलोपदेशमा लानी सोमतिलकसूरि रचित संस्कृत टीका शी गिगोनो बालावबोधकारे प्रचूर प्रयोग को जणाय छे. छतां शीलो. बाला. मात्र अनुवाद न बनतां एक स्वतंत्र रचनानी कक्षामां मूकी शकाय तेवी कृति बनेल छे ते उ. मेरुसुंदरती आख्यानकार तरीकेनी सिद्धहस्तताने आभारी छे. प्रत-परिचय अने संपादन-पद्धति : मेरुसुंदरना शीलो० बाला नी घणी मोटी संख्यामां प्रतो अमदावाद, पाटण, जेसलमेर, खंभात, लीमडी आदि अनेक स्थळेना जैन ग्रंथभंडारोमां मळे छे. आ हकोकत कृतिनी लोकप्रियतानी अने व्याख्यान वगेरेमा ब्यापकपणे ते उपयोगी रही होवानी सूचक छे. प्रस्तुत संगदन प्रतोनी प्राचीनता व. ध्यानमां लईने नीचेनी ६ हस्तप्रतोना आधारे करवामां आव्यु छे, जेमनी संज्ञा क्रमे B, C, K, L, P अने Pu छे.' शीलो० बालानी सौ प्रथम नकल तथा पाठांतरोनी काची नांध श्रीमती गीताबहेन रायजीए वर्षों पूर्वे करेली. तेमणे B प्रतिनी नकल करी हती अने L तथा P प्रतोनां पाठांतरो लीयां हतां. संपादन-समये अमारी पासे आमांनी मात्र L प्रति ज हती. आथी पाठनी चोकसाइ १. प्रस्तुत संपादनमा मूळपाठना पृ. १ थी ३२ सुधी B प्रतिनी संज्ञा भूलथी A छपाई छे, ते B समजवी, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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