Book Title: Silopadesamala Balavbodh
Author(s): Merusundar Gani, H C Bhayani, R M Shah, Gitaben
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 15
________________ शीलोपदेशमाला-बालावबोध शोलोपदेशमाला-बालावबोध शीलो. बाला.नी एक हस्तप्रतमाथी श्री मो. द. देसाइए बालावबोधना अंतमां आपेली लेखकनी स्वरचित प्रशस्ति नोंधी छे.' ते आ प्रमाणे छ श्रीमत्-खरतरगच्छे बहु-गुण-संबुध-राज-विदिते । षत्रिशत्-गुण-सहिता श्रीमज्जिनभद्रसूग्योऽभवन् । तत्राट्टाचल-शृङ्गार-हार-नायक-सन्निभाः । श्रीजिनचन्द्रसूरीन्द्राः जयन्ति सपरिच्छदाः । तेषां गुरूणामादेशं प्राप्य श्री-जय-मन्दिरं । श्रीमद्रत्नमूर्ति-गणि-वाचनाचार्य-शिष्यकः । श्रीमेरुसुन्दर-गणेगुण-मत्ति-परायणः । नाना-पुण्य-अनाकीर्णे दुर्गे श्री-मण्डपाभिधे । उदार-चरित ख्यात- श्रीमालज्ञाति-सम्भवः । संघाधिप-धनराजो विजयोऽस्ति दयापरः । तस्याभ्यर्थनया भव्यजनोपकृति-हेतबे । शोलोपदेशमालाया बालावबोधो मया रचितः । तावन्नन्दतु सोऽयं यावज्जिन-वीर-तीर्थमिदम् ॥ आ प्रशस्ति परथी शीलो. बालानी रचनानो समय, स्थळ अने उद्देश त्रणे स्पष्ट थाय छे-. सं. १५२५ ( ई. स. १४६९) मां बाला. भी रचना मेरुसुन्दर गणिए मंडाहर्गमां करो. श्रीमाल ज्ञातिना संघरति धनराजनो प्रार्थनाथी भन्यजनोना उपकार माटे लेखके आ रचना करी. मळ गाथा आपी एनो अनुवाद करवो अने वच्चे वच्चे अघरा शब्दोनी समजूति आपता जवी एवी खास करीने बालावबोधनी परिपाटि होय छे. अहीं पण ए ज पद्धति मेरुसंदरे, अपनावी छे. विशेषमा मूळ गाथाओमा आवतां दृष्टांतोने विस्ताराने संपूर्ण कथा रूपे रजू कर्या छे. आथी मूळ ११४ प्राकृत गाथाओनी व्याख्यानो विस्तार ६००० ग्रन्थान जेटलो मोटो थयो छे. आम बालावबोधनो मोटो भाग आ दृष्टांतो अने कथाओए रोक्यो छे. कथाप्रकतिओ अने कथाघटकोना अभ्यासनी दृष्टिए उपयोगी होई आ बधी कथाओनी विषय-निर्देश, कथा-क्रमांक अने पृष्ठ-संख्या सायेनी यादी नीचे आपी छे. , कथा-क्रमांकावटकोना से शाल ७ -८ १ गुणसुंदरीनी कथा पृ. २४ शीलभ्रंश उपरि २ द्वीपायन ऋषिनी कथा ३ विश्वामित्र ऋषिनी कथा १. जैन गूर्जर कविओ मा. ३, खं-२, पृ १५८३. २. शीलो. बाला. ना प्रस्तुत संगदनमां उपयोगमा लीधेली हस्तप्रतोमा मात्र एक B प्रतमां, जूज शाब्दिक फेरफार साथे, आ प्रमाणेनी ज कवि-प्रशस्ति मळे छे. पण ते अधूरी छे. जुआ प्रते-परिचय. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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