Book Title: Silopadesamala Balavbodh
Author(s): Merusundar Gani, H C Bhayani, R M Shah, Gitaben
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 14
________________ भूमिका आ बालावबोधो उपरांत हेमचन्द्राचार्य ज्ञान मंदिर, पाटणना संग्रहमा मेरुसुंदर उपाध्यायना नामे प्रश्नोत्तर-पदशतक नामक एक गुजराती रचना' तथा ६ जेटलां नानां नानां संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रश स्तोत्रो पण मळे छे. बालावबोधोनी यादी जोतां जणाय छे के उपाध्याय जीए विविध विषयोना संस्कृत-प्राकृत ग्रंथोने गुजरातीमा उतार्या छे. वृत्तरत्नाकर, वाग्लट लकार ने विदग्धमुखमंडन जेवा जैनेतर ग्रंथोना बालावबोधो पोताना शिष्योने काव्य अने अलंकारनी समज आपवा तेमणे रच्या होई शके. ज्यारे षडावश्यक, शीलोपदेशमाला, उपदेशमाला आदिना वालावबोधो नवदीक्षित शिष्यो तेम ज साधारण ज्ञान धरावता श्रावकोने धर्मनी तत्त्वोनो बोध कराववाना उद्देश्यथी रच्वा जणाय छे. भव्य एटले के मुमुक्षु जीवोने बोध आपवाना हेतुथी पोते आ बालावबोधनो रचना करी छे एम तेओए स्वयं शौलो० बाला० नो प्रशस्तिमां कह्य छे. ___ उपाध्यायजी समक्ष ते समये आदर्शरूपे तरुणप्रभसूरि, सोमसुन्दरसूरि, जिनसागरसूरि आदि रचित बालावबोधो हता. षडावश्यक बाला. नी प्रशस्तिमा तेमणे जणाव्युं छे के तरुणप्रभसूरि-रचित षडा. बाला.ना अनुसार पोते आ बाला. रची रह्या छे.४ मेरुसुन्दरनी विशिष्टता एमना लाघवमा रहेली छे. निरर्थक लंबाण विना ज तेओ मूळना अर्थने गुजरातीमां सचोटताथी अने सरळताथी उतारी शक्या छे. तेमना उपलब्ध बोलावबोधोमां मात्र ७ना रचना-वर्षनी नोंध छे. तेमांधी प्रथ स्तवन बाला० नी रचना वि. सं. १५१८ नोंध'इ छे अने वाग्भटालंकार-बाला नी रचना वि. सं. १५३५. बाकीना पण आ समयगाळानी आजुबाजु ज रचाया होवान कही शकाय. वळी पडावश्यक, शीलोपदेशमाला अने षष्टिशतकप्रकरण ए त्रणना बालावबोधो मंडपदर्ग (हालना मध्यप्रदेशमा आवेल मांडु के मांडवगढ ) मा रहीने तेओए त्रणेक वर्ष ना गाळामां रच्या छे." १. हेमचन्द्राचार्य ज्ञान मंदिर, पाटण, हस्तप्रत नं. १२३६६. २. हेमचन्द्राचार्य ज्ञान मंदिर, पाटण, हस्तप्रत नं. ११५०१. ३. जुओ पछीनो पेरेग्राफ. ४. Descriptive Catalogue of Sans. Pkt. Mss. in the Library of the B. B. R. A. S., Bombay, Vols. III-IV p. 400 ( Ms. no. 1535 ) ५. षष्टिशतक प्रकरणनो बालावबोध मेरुसुंदर उपाध्याये बनारसमा रही रच्यो होवार्नु पोताना षष्टिशतक प्रकरणना संपादनमां डॉ. सांडेसराए नोंध्यु छे. (प्रस्तावना, पृ. १५). 'वणारीस' शब्दनो 'बनारस' एवो भळतो अर्थ करवाथी आ भूल थई जणाय छे. वणारीस'नो अर्थ अहीं 'वाचक' के 'उपाध्याय' एवो छे. अने मेरुसुन्दरना विशेषण तरीके ते पद अहीं तृतीया विभक्तिमा प्रयोजायु छे. वळी ला. द. भारतीय संस्कृति विद्यामंदिरना सग्रहमांनी नं. ३६५९नी षष्टिशतक प्रकरण-बालावबोधनी प्रतिनी प्रशस्तिमां तेनी रचना मंडपदुर्गमां वि. सं. १५२७ मां थयानु स्पष्ट जणावेल छे. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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