Book Title: Silopadesamala Balavbodh
Author(s): Merusundar Gani, H C Bhayani, R M Shah, Gitaben
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 12
________________ कर्ता लेखन भूमिका प्रथम शीलतरंगिणी सिवाय बाकीनी त्रण विशे नामोल्लेख सिवाय कशी माहिती मळती नथी, ज्यारे शीलतरंगिणी आगळना पेराग्राफमां जणाव्या प्रमाणे प्रकाशित थई गयेल छे. शीलतरंगिणीनी रचना रुद्रपल्लीय गच्छना आ० संघ तिलकसूरिना पट्टशिष्य आ. सोमतिलकसूरि, अपरनाम विद्यातिलके वि. सं. १३९४ (ई. स. १३३७) मां करेल छे. तेमना रचेला अन्य ग्रंथोमां वीरकल्प, षड्दर्शनसूत्रटीका, लघुस्तवटीका अने कुमारपालदेवचरितना नामो मळे छे.' शोलतरंगिणी टीका अहीं विशेष उल्लेखनीय एटला माटे छे के मेरुसुंदर उपाध्याय आ संस्कृत टीकाने अनुसरीने बालावबोधनी रचना करी जणाय छे. शीलतरंगिणीमां जे जे कथाओ के ते बधी ज कथाओ ते ज क्रमे अने लगभग सरखा विस्तारथी बालावबोधकारे गुजरातीमा आलेखी छे.. जुनी गुजरातीमां शोलोपदेशमाला पर अनेक बालावबोध जुदा जुदा समये रचायेला मळे छे, जेनी यादी आ प्रमाणे छे रचना हस्तप्रत-संग्रह अने संवत संवत स्थळ अज्ञात १४६६ हेमचन्द्राचार्य जैन ज्ञानमंदिर, पाटण १५२१ मेरुसुंदर १५२५ अनेक संग्रहमा সয়ার १५३० पूर्व १५५१ छाणी १५८८ १६१६ हेमचंद्राचार्य ज्ञान मंदिर, पाटण १६४० १९२१ - प्र. कान्तिविजयजी संग्रह, वडोदरा आ यादी परथी जणाय छे के मेरुसुंदर उपाध्यायनी पहेलां पण शीलोपदेशमाला पर बालावबोधो रचाया हता. पण आ बालावबोधोमां मेरुसुंदरना बालावबोध जेटली प्रसिद्धि बीजाने नथी मळी. मेरुसुंदर उपाध्याय अने तेमनी कृतिओ: शोलोपदेशमाला-बालावबोधना कर्ता उपाध्याय मेरुसुंदर विक्रमना सोळमा शतकना पूर्वाधमा थई गया. तेओ खरतरगच्छना प्रसिद्ध आचार्य जिनभद्रसूरि (वि.सं.१४४९-१५१४)ना पट्टशिष्य आ जिनचन्द्रसूरि (वि.सं.१४८७-१५३०) ना शिष्य वा० रत्नमूर्ति गणिना शिष्य हता. १. जैन परंपरानो इतिहास, ले. त्रिपुटि मुनि, भा. र, पृ. ४३६. २. शीलो. बाला. नी रचना पछी दश वर्षे (वि. सं. १५३५ मां), शीलो० बाला. ना रचनास्थळ मंडपदुर्गमा ज लखायेली शोलतरंगिणीनी एक हस्तप्रत ला. द. भारतीय संस्कृति विद्यामंदिरना हस्तप्रत-संग्रहमां छे. ते पण शीलतरंगिणी ते समय अने प्रदेशमा प्रसिद्ध होवानो आडकतरो पुरावो पूरो पाडे छे. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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