________________
२
शोलोपदेशमाला - बालावबोध
मूळ प्राकृत शीलोपदेशमाला अने तेना कर्ता :
अहिंसा, सत्य, क्षमा, दया, तप, सम्यक्त्व, शील आदि गुणाना पालननो सरळ प्राकृत गाथाओमां सीधो उपदेश अने ते ते विषयमां अनुकरणीय व्यक्तिओना चरित्रनो निर्देश - ए प्रकारनो धर्मोपदेशात्मक गाथाबद्ध कृतिओनी एक परंपरा प्राकृत साहित्यमा जोवा मळे छे.' धर्मदास गणिनी उपदेशमाला, हरिभद्रसूरिनी उपदेश रद, जयसिंहसूरि-रचित धर्मोपदेशमाला इत्यादि आनां प्रसिद्ध उदाहरणो छे. शीलोपदेशमालाने पण आ परंपरामां मूकी शकाय.
शीलोपदेशमालामां शीळ एटले के (जैन साहित्यना रूढ अर्थमां ) ब्रह्मचर्य - पालन विषयक उपदेश आपवामां आत्र्यो छे दृष्टांतरूपे तेमां शीलपालन करनार अनेक महान स्त्रीपुरुषोनो निर्देश छे, शीलभंगथी थती हानि अने शीलपालनथी थतां लौकिक-अलौकिक लाभोनुं वर्णन प्रचलित उदाहरणो द्वारा करो सामान्य जनोंने शीलनुं महत्व समजावबानो कविनो आमां उद्देश छे.
महाराष्ट्री प्राकृत भाषामा, आर्या छेदमां ११४ गाथामां रचायेली शीलोपदेशमालाना कर्ता जयसिंहसूर - शिष्य जयकीर्ति नामे छे. गुरु-शिष्य विशे अन्य कई माहिती प्राप्त थती नथी. जयसिंहसूरि नामक एक आनाये धर्मदासगणि रचित उपदेशमालानुं अनुसरण करीने धर्मोपदेशमाला नामक प्राकृत गाथाबद्ध रचना अने तेनुं विवरण करेल छे. कृष्ण मुनिना शिष्य आ जयसिंहसूरए पोतानो धर्मोपदेशमालानुं विवरण नागोरमां वि.सं. ९१५मां पूरुं कर्यानो उल्लेख छे. * संभव छे के शीलोपदेशमालाना कर्ता जयकीर्ति आ जयसिंहसूरिना शिष्य होय अने गुरुनी धर्मोपदेशमालानुं अनुकरण करी शोलोपदेशमालानी रचना करी होय. जो आम होय तो जयकीर्तिनो समय विक्रमनी दशमी शताब्दी अनुमानी शकाय.
शीलोपदेशमालानी सेंकडो हस्तप्रतो जैन ज्ञानभंडारोमां मळे छे ते हकीकत एनु केट महत्त्वपूर्ण स्थान हतुं तेनो निर्देश करे छे.
अत्यार सुधीमां शीलोपदेशमालानी बे आवृत्तिओ छपाई प्रसिद्ध थई छे. ई. स. १९०० मां अमदावादनी विद्याशाळा संस्थाए शीलोपदेशमाला मूळ अने तेनो गुजराती अनुवाद तथा तेनी शीलतरंगिणी नामक टीकानो मात्र गुजराती अनुवाद प्रकाशित करेल अने ई. स. १९०९ मां श्रावक हीरालाल हंसराजे जामनगरथी शीलतरंगिणी टीका सहित शीलोपदेशमाला प्रकाशित करेल. आ बन्नेमां मूळ गाथाओ अशुद्धप्राय छपायेल छे अमे अहीं विविध हस्तप्रतो तेम ज छंदना आधारे पाठनिर्णय करी शुद्ध पाठ आप्यो छे. शीलोपदेशमालानी संस्कृत अने गुजराती टीकाओ :
शीलोपदेशमाला जैन साहित्यमा औपदेशिक रचनाओमां महत्त्वपूर्ण स्थान घरावती होवानुं एना परनी अनेक टीकाओथी पण सिद्ध थाय छे. जिनरत्न कोशमां शीलोपदेशमालान। चार संस्कृत टीकाओनी नोध छे. - (१) आ. सोमतिलकसूरि रचित शोलतरंगिणी, (२) ललितकीर्ति-कृत टीका, (३) पुण्यकीर्ति-कृत अने (४) अज्ञात - कर्तृक वृत्ति, आमांनं १ जुओ-जैन साहित्यका बृहद् इतिहास ( पार्श्वनाथ विद्याश्रम, वाराणसी, १९६८ भा. ४, प्रकरण- ३.
२. एजन, पृ. १९६.
३. जिनरत्नकोश, ह. दा. वेलकर, पुना, · १९४४, पृ. ३८५.
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org