Book Title: Shrutsagar Ank 2013 12 035
Author(s): Mukeshbhai N Shah and Others
Publisher: Acharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba

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Page 5
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संपादकीय श्रुतसागरनो ३५मो अंक विशेषांक रूपे आपना हाथमां छे. विगत एक वर्षथी श्रुतसागर पत्रिकामा वाचको अने विद्वानोना स्वाध्याय माटे विविध प्रकारे माहितीओ प्रकाशित करवामां आवी. विशेष माहितीओ माटे दर त्रीजा अंके श्रुतसागरने एक विशिष्ट कद आपी प्रकाशित कर्यु. ए श्रेणिमां आ वर्षनो आ छेल्लो अंक छे.आ श्रेणिना अंकोमा सामान्य अंक करता कांईक विशेष कृतिओ अने लेखोने प्रकाशित करवामां आव्या छे. दान एटले मात्र दस्त्र, पात्र, के भोजन विगेरेनुं ज नहीं, पण श्रुत, क्षमा, अभय, अनुकंपा जेवा एना केटलाय प्रकारो अने भेदो आ दान तत्त्वमां मळे छे. दान तत्त्वनी परंपराने आ अवसर्पिणी काळना सौ प्रथम आदिश्वर भगवाननी मीठी नजर प्राप्त थई. श्रेयांस द्वारा अपायेला ईक्षुरसथी एक वर्षना उपवासी श्रमण आदिनाथ परमात्मानुं पारणुं थयु, अने जगतमां दान धर्मनो महिमां गवायो. मेघवाहनराजा अने शालिभद्रजी! ईलायचीकुमार अने अरणिकजी! जीरण शेठ अने धन्यकुमार! जेवा अनेक पात्रोना भव्य भूतकाळमां दानधर्मनो प्रभाव घणो गहेरो छे. भव्यमनोरथपूर्वक अने अति विशुद्ध परिणामथी अपाता दाननी शक्तिनुं महात्म्य गाता केटलाय कथा-चरित्रो पण आजे आपणी पासे उपलब्ध छे. विशेषमां दानधर्मनी महत्ता अने दानधर्मना प्रकारोनी वात आ अंकमां प्रकाशित मेघवाहननप कथानी प्रस्तावनामां निर्देशायेली छे. आ अंकनी वात : छल्ला बे-त्रण अंकथी पू. गुरुभगवंतश्रीना विविध विषयक चिंतनो रजू थई रह्यां छे. आ अंकमां ज्ञान अने ज्ञानी संबंधी पू. गुरुभगवंतश्रीनी चिंतनकणिकाओने प्रकाशित करी छे. आ अंकमां पू. सुयशचंद्र-सुजसचंद्रविजयजी म. सा. तरफथी संपादित थईने आवेली रत्नमंडन गणि कृत मेघवाहन नृप कथा अत्रे प्रकाशित करी छे. मु. श्री सुयशचंद्र वि. प्रस्तावना अंतर्गत दानधर्म विषयक पूरक माहिती खूब सुंदर रीते रजू करी छे, साथे साथे तुलनात्मक रीते दानधर्मना प्रकारोनी रजूआत कोई पण अभ्यासीने उपयोगी बनी शके एम छे. दानधर्म विषयक कृतिसाहित्य अने सामान्य For Private and Personal Use Only

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