Book Title: Shatrunjay Bhakti Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar Publisher: Abhinav Shrut Prakashan View full book textPage 5
________________ - - - तलेटी सामे बोलवानी स्तुति श्री सिद्धाचल नयणे जोतां, हैयं मारू हर्ष धरे, महिमा मोटो ए गिरिवरनो, सुनतां तनडु नृत्य करे, कांकरे कांकरे अनंता सिध्या, पावन ए गिरि दु:खड़ा हरे, ए तीरथनुं शरण होजो, भवोभव बंधन दूर करे,....! जत्मांत रोमां जे की, पापो अनंता रोषथी, ते दूर जाये क्षण महि, निरखे सिद्धाचल होंशथी, जोहां अनंत जीव मोक्षे गया, अने भाविमां जाशे वली, ने सिद्धगिरि ने नमन करू हु, भावथी नित नित वलो....२ जे अमर शत्रुजय गिरि छे. परम ज्योतिर्मय सदा, अलहल थती जेनी अविरत मंदिरोनी संपदा, उत्तग जेना शिखर करता, गगन केरी स्पर्शना, दर्शन थकी पावन करे ते, विमल गिरि ने वंदना....३ ४ प्रथम ख मासमण दइ - इरिथावही - तस्सउत्तरी अन्नत्थकही १ लोगस्सनो काउस्सग करी, प्रगट लोगस्स कहेवो । ४त्रण खमासमण देवा। ४ इच्छाकारेण संदिसह भगवन् चैत्यवंदन करूं?इच्छ कही चैत्यवंदन सकल कुशल वल्ली पुष्करावर्त मेघो दुरित तिमिर भानु: कल्प वृक्षोपमान: Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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