Book Title: Shatrunjay Bhakti
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Abhinav Shrut Prakashan

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Page 21
________________ ( १७ ) श्रावक मेघ समा कह्यां, करतां पुण्य नु काम, पुण्यनी राशी वधे घणी, तिणे पुण्यराशि नाम.... सिद्धा.... ७ संयमघर मुनिवर घणां, तप तपतां एक ध्यान, कर्म वियोगे पामिया, केवल लक्ष्मी निधान । लाख एकाणुं शिववर्या, नारद शुं अणगार, नाम नमो तिणे आठमु श्रीपदगिरि निरधार.... सिद्धा.....८ श्री सीमंधर स्वामीए, ए गिरि महिमा विलास, इन्द्रना आगे वर्णव्यो, तिणे ए इन्द्र प्रकाश.... सिद्धा....९ दश कोटि अणुव्रतधरा, भक्ते जमाडे सार, जैन तीर्थ यात्रा करे, लाभ तणो नहीं पार | तेह थको सिद्धाचले, एक मुनि ने दान, देतां लाभ घणो हुए, महातीरथ अभिधान.... सिद्धा....१० प्रायः ए गिरि शाश्वतो, रहेशे काल अनन्त, शत्रुंजय महातम सुणी, नमो शाश्वत गिरि संत.... सिद्धा....११ गौ नारी बालक मुनि चउ हत्या करनार, यात्रा करतां कार्तिकी, न रहे पाप लगार । ज परदारा लपटी, चोरी ना करनार, देव द्रव्य गुरू द्रव्यनां, जे वली चोरणहार । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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