Book Title: Shatrunjay Bhakti
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Abhinav Shrut Prakashan

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Page 33
________________ ( २९) जीरे प्राणेश्वर प्रभुजी तमे, आतमनां रे आधार मारे प्रभुजी तुमे एक छो, जाणजो निरधार....घडी....३ जीरे एक घडो प्रभु तुम बिना, जाय वरस समान प्रेमविरह हवे केम खमु, मानुवचन प्रमाण....घडी....५ जोरे अंतरगतनी वातडो, कहो कोने कहेवाय, वालेसर विशवासीया, कहेता दुःखजायसुणता सुख थाय....घडी: जोरे देव अनेक जगमां वसे, तेनी रिद्धी अनेक तुम विण अवरने नविनमुएवो मुज मनटेक....घडो...६ जीरे पंडित विवेक विजयतणो, प्रणमे शुभ पाय हरखविजय श्री ऋषभनां, जुगते गुण गाय....घडो....७ सिद्धाचल का स्तवन ( भावगीत ) सिद्धाचल की भक्ति रचा सुख पा .. लु.....रे, कर आदिनाथ को वंदन पाप खपा लुरे.... जो कोयलड़ी बन जाउं, प्रभुजी के गाने गाउ मैं दिनानाथ को रीझा रीझाकर, अपना भाग जगालु। शिवसुख पा लु रे....कर....१ जो मोर कई बन जाउं, प्रभु आगे नृत्य रचाउं रावण को तरह से तीर्थकर पद पूजी एक कमालु शिवसुख पा लुरे कर...२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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