Book Title: Shatrunjay Bhakti
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Abhinav Shrut Prakashan

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Page 40
________________ ( ३६ ) जगत हितकारी जिनवरा, आव्या एणे ठाम, ते तीर्थेश्वर प्रणमिये, जस महिमा उद्धाम....२८..... नदी शेत्रु जो स्नानथी, मिथ्या मल धोवाय, ते तोर्थेश्वर प्रणमिये, सत्रि जनने सुखदाय.... २९..... आठ कर्म ने सिद्धगिरे, न दीये तीव्र विपाक; ते तीर्थेश्वर प्रणमिये, जिहां नवि आवे काक.... ३०..... सिद्धशिला तपनीयमय, रत्न स्फटीकनी खाण, ते तीर्थेश्वर प्रणमिये, पाम्या केवल सोवन रूपा रत्ननी, औषधि जात अनेक, ते तीर्थेश्वर प्रणमिये, न रहे पातक एक....३२.... संयमधारी संयमे, पावन होय जिण क्षेत्र, ते तीर्थेश्वर प्रणमिये, होवे निर्मल निर्मल नाण....३१..... नेत्र....३३.... श्रावक जिहां शुभ द्रव्यथी, उत्सव पूजा स्नात्र, ते तीर्थेवर प्रणमिये, पोषे पात्र साहमिवच्छल पुण्य जिहां, अनंतगणु ते तीथेंश्वर प्रणमिये, सोवन फुल सुन्दर यात्रा जेहनी, देखी हरखे ते तीर्थेश्वर प्रणमिये, त्रिभवन मांहे सुपात्र....३४..... कहेवाय, वधाय .. ३५.... चित्त; विदित.... ३६..... Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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