Book Title: Shatrunjay Bhakti
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Abhinav Shrut Prakashan
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रकार्तिको पूनमे पटदर्शन-सिद्धाचल आराधना करनारा 33 बाल ब्रह्मचारी श्री नेमिनाथाय नमः श्री आनंद क्षमा ललीत सुशील सुधर्मसागर गुरुभ्यो नमः अभिनव श्रुत प्रकाशन का अभिनव नजराना शत्रुंजय र भक्ति संपादक मुनिश्री दीपरत्नसागर (M.Com.M.Ed.) अभिनव लघुप्रक्रिया-संस्कृत व्याकरण के सर्जक ש नवाणु यात्रा करनारा, पूनम करनारा के लिए Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ popopoppo अनुक्रमणिका dxxxxxxxxxxx (१) तलेटी (२) श्री शांतिनाथ (३) श्री आदिनाथ स्तुति चैत्यवंदन स्तवन थोय १ २ ४ ५ (४) रायण पगला ८ (५) श्री पुंडरीकस्वामी ११ (६) घेटी पगला १३ (७) २१ खमासमण (८) तलेटी थी घेटी पले का अन्य स्तवन (९) १०८ खमासमण ९ १२ १४ ९ १२ १४ १५ a m १९ m ३३ mv मुद्रक : श्रीकृष्ण प्रिंटिंग प्रेस, पुस्तक बाजार; नीमच-२ ३ ५ ८ ११ १३ १५ Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भूमिका हिन्दी संस्करण-द्वितीय आवृति की सुविज्ञ पाठको! "शत्रुजय भक्ति" के हिंदी संस्करण की द्वितीय आवृति आपके हाथों में हैं। आप शत्रुजय तीर्थ की यात्रा करने को पधारें या कार्तिक पूर्णिमा के दिन शत्रुजय पट के सामने भाव यात्रा करें। मगर पांच चैत्यवंदन को विधी नितान्त आवश्यक है। तलेटी, शांतिनाथ प्रभ, रायण पगला, पुंडरीक स्वामी आदिनाथ प्रभु के चैत्यवंदनादि की यह पहली एक मात्र ऐसी कितान है जिसमें सब स्थानों के सम्पूर्ण अनुरुप स्तुति चैत्यवंदन स्तवन थुई का संग्रह किया गया है। इसके साथ ही घेटी पगला का चैत्यवंदन २१खमासमण और १०८ खमासमण भी आपको इसमें मिलेंगे। २ वर्ष के अल्प समय में इसकी हिन्दी और गुजराती में प्रकाशित इसकी ८००० प्रतियां हमारे प्रयास की सफलता का प्रमाण है। तीर्थ आराधना करके हमारा पुरुषार्थ सफल बनावें। मेहता प्र. जे. अभिनव श्रुत प्रकाशन प्रधान डाक घर के पीछे जामनगर 361001 Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ त्रण प्रदक्षिणाना दहा काल अनादि अनंतथी, भवभ्रमणानो नहीं पार, ते भ्रमणा निवारवा, प्रदक्षिणा दउं त्रण सार भमतीमां भमता थका, भव भावठ दूर पलाय, सम्यग्दर्शन पामवा, प्रथम प्रदक्षिणा देवाय....१.... जन्म मरणादि सवि भय टले सीझे जो दरिशन काज, सम्यग् ज्ञानने पामवा, बीजी प्रदक्षिणा जिनराज, ज्ञान वडु संसारमा, ज्ञान परम सुख हेत ज्ञान विना में नवि ला, परम तत्त्व संकेत....२.... चय ते संचय कर्मनो, रिक्त करे वली जेह, चारित्र नाम नियुकते कह्य वंदो ते गुण गेह शाश्वत सुखने पामवा, ते चारित्र निरधार, त्रोजी प्रदक्षिणा ते कारणे, भवदुःख भंजनहार....३.... Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - - - तलेटी सामे बोलवानी स्तुति श्री सिद्धाचल नयणे जोतां, हैयं मारू हर्ष धरे, महिमा मोटो ए गिरिवरनो, सुनतां तनडु नृत्य करे, कांकरे कांकरे अनंता सिध्या, पावन ए गिरि दु:खड़ा हरे, ए तीरथनुं शरण होजो, भवोभव बंधन दूर करे,....! जत्मांत रोमां जे की, पापो अनंता रोषथी, ते दूर जाये क्षण महि, निरखे सिद्धाचल होंशथी, जोहां अनंत जीव मोक्षे गया, अने भाविमां जाशे वली, ने सिद्धगिरि ने नमन करू हु, भावथी नित नित वलो....२ जे अमर शत्रुजय गिरि छे. परम ज्योतिर्मय सदा, अलहल थती जेनी अविरत मंदिरोनी संपदा, उत्तग जेना शिखर करता, गगन केरी स्पर्शना, दर्शन थकी पावन करे ते, विमल गिरि ने वंदना....३ ४ प्रथम ख मासमण दइ - इरिथावही - तस्सउत्तरी अन्नत्थकही १ लोगस्सनो काउस्सग करी, प्रगट लोगस्स कहेवो । ४त्रण खमासमण देवा। ४ इच्छाकारेण संदिसह भगवन् चैत्यवंदन करूं?इच्छ कही चैत्यवंदन सकल कुशल वल्ली पुष्करावर्त मेघो दुरित तिमिर भानु: कल्प वृक्षोपमान: Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२) भव जलनिधि पोत: सर्वं संपत्ति हेतु: स भवतु सततं वः श्रेयसे शांतिनाथ: तलेटीनुं चैत्यवंदन श्री सिद्धाचल तीर्थनायक, विश्वतारक जाणीये, अकलंक शक्ति सुरगिरि, विश्वानद वखाणोये. मेरू भहीधर हस्तगिरिवर चर्मगिरिधर चिन्हए. श्वास मां सो वार वंदु, नमो गिरि गुणवंत ए....१ हसितवदने हेमगिरिने पूजोए पावन थई, पुडरिक पर्वतराज शतकुट, नमन अंग आवे नही, प्रोति मंडण कर्म छंडण शाश्वतो सुरकंद ए,श्वास २ आनंद धर पुण्यकंद सुन्दर, मुक्तिराजे मन वस्यो, विजयभद्र सुभद्र नामे, अचल देखत दिल वस्यो, पाताल-मुलने ढंक पर्वत, पुष्पदंत जयवंत हे श्वास...३ बाहुबली मरूदेवी भगीरथ सिद्धक्षेत्र कंचन गिरि लोहिताक्ष कुलिनि वासमानव रैवताचल महागिरि, शेत्रुजा मणि पून्यराशि कुवर केतु कहत हे श्वास ....४ गुणकंद कामुक दृढ़शक्ति, सहजानंद सेवा करे, जय जगत तारण ज्योति रूप माल्यवंतने मनोहरे, इत्यादिक बहु कीति माणक,करत सुर अनंत हे,श्वास....२ Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३) जंकिची-नमुत्थुणं-जावंति-खमासमण-जावंतनमोऽहंतकहीस्तवन तलेटी का स्तवन त्रिभुवन तारक तीर्थ तलाटी, चैत्यवंदन परिपाटिजी, मिथ्या मोह उलंघी घाटी, आपदा अलगी नाठीजी....त्रि....१ जिनवर गणधर मुनिवर नरवर, सुरनर कोडा कोडिजी इहां उमा गिरिवर ने वांदे, पूजे होडा होडिजी....त्रि....२ गुणठाणानी श्रेणी जेहवो, उंचो पंथ इहांथीजी, चढ़ते भावे भवि आराधो, पुन्य विना मिले किहांधीजी....त्रि...३ मेरु सरसव तुज मुज अंतर, उंचो जोइ निहालुजी, तोपण चरण समीपे बेठो, मननो अंतर टालुजी....त्रि....४ सेवन कारण पहेली भूमि, अमल अद्वेष अखेदजी धर्मरत्न पद ते नर साधे, भूगर्भ रहस्यनो भेदजी....त्रि....५ जयवीयराय-अरिहंत चेइयाणं-अन्नत्थ-नवकारका-काउ. तलेटी की थोय श्री विमलाचल गिरिवर कहीए, मोक्षतणो अधिकारजी, इणगिरि हुति भविजन निश्चे, पाम्या केवल सारजी, कांकरे कांकरे साधु अनंता, सिद्धा इणगिरि आयाजी कर्म खपावीने केवल पाम्या, थई अजरामर कायाजी....? बाद में खमासमण देना Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ४ ) - - श्री शांतिनाथजो सामने बोलने की स्तुति श्रीमते शांतिनाथाय. नमः शांति विधायिने, त्रैलोक्यस्याऽमराधीश: मुकुटाभ्यचितांधये.... १ शांतिः शांति कर: श्रीमान्,शांति दिशतु मे गुरू: शांतिरेव सदा तेषां, येषां शांति-गृहे गृहे.... २. सुधा सोदर वाग्ज्योत्सना, निर्मलीकृत दिमखः मगलक्ष्म्या तमःशान्त्य,शांतिनाथ जिनोस्तुवः....३ श्री शांतिनाथजी का चैत्यवंदन शांति जिनेश्वर सोलमा, अचिरासुत वंदो, विश्वसेन कुल नभमणि, भविजन सुख कंदो....१ मृगलंछन जिन आउखु, लाख वरस प्रमाण, हत्थिणाउर नयरी घणी, प्रभुजी गुणमणि खाण.... २ चालीस धनुषनी देहडी ए, समचउरस संठाण, वंदन पद्म ज्यु चंदलो, दिठे परम कल्याण.... ३ जंकिचि-नमुत्थुणं-जावंति-खमासमण-जावंत-नमोऽहत् श्री शांतिनाथजी का स्तवन मारो मुजरो ल्योने राज, साहिब, शांति सलुणा-आंकड़ी अचिराजीना नंदन तोरे, दरिसण हेते आव्यो समकित रीझकरोने स्वामो भक्ति भेटणुं लाव्यो...मारो...१ Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दुःख भंजन छे बिरुद तमार, अमने आशा तुमारी, तुमे निरागी थइने छूटयो, शी गति होशे हमारो .... मारो २ कहेशे लोक न ताणी कहवु, एवडु स्वामी आगे, पण बालक जो बोली न जाणे, तो किम व्हाला लागे....मारो ३ माहरे तो तु समरथ साहिब, तो किम ओछु मार्नु, चिन्तामणी जेण गांठे बांध्यु. तेहने काम किश्यानु...मारो ५ अध्यातम रवि उग्यो मुजघट, मोह तिमिर हयुं जुगते, विमल विजय वाचकनो सेवक, राम कहे शुभ भगते....मारो ५ जय वीयराय, अरिहंत चेइयाण-अन्नत्थ-१ नवकार काउस्सग्ग श्री शांतिनाथजी की स्तुति तज लविंग जायफल एलची, नागर वेलिशु रंगी अति मची। मोरा मन थकी अति वालहो, . शांति जिनेस र मूर्ति में लही । श्री आदिनाथजी सामने बोलने की स्तुति करुणासिन्धु त्रिभुवन नायक, तुमुज चितमां नित्य रमे चाकरी चाहु अहोनिश ताहरी, भावथी मन मारू विरमे । श्री सिद्धाचल मंडन साहिब, तुम चरणे सुरनर प्रणमे सम्यक दर्शन अमने आपो, विश्वना तारणहार तमे....१ Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पूर्णानन्दमयं महोदयमयं, केवल्यचिद ङमयं रूपातीत मयं स्वरूपरमणं स्वाभाविकी श्रीमयं ज्ञानोद्योतमयं कृपारसमयं, स्याद्वाद विद्यालयं श्री सिद्धाचल तीर्थराजमनीशं वन्देऽहमादीश्वरं....२ आदिमं पृथिवीनाथ मादिमं निष्परिग्रहम आदिमं तीर्थनाथं च ऋषभ स्वामिनं स्तुम.....३ श्री आदिनाथजी का चैत्यवन्दन विमल केवल ज्ञान कमला, कलित त्रिभवन हितकरं सुरराज संस्तुत: चरणपंकज, नमो आदि जिनेश्वरं...! विमल गिरिवर शृगमंडन, प्रवर गुणगण भूधरं मुर असुर किन्नर कोडि सेवित, नमो आ द जिनेश्वरं....२ करती नाटक किन्नरी मण, गाय जिन गुण मनहरं निर्जरावली नमे अहोनिश, नमो आदि जिनेश्वरं....३ पुडरिक गणपति सिद्धि साधित, कोडि पण मुनि मनहरं श्रो विमल गिरिवर शृगसिद्धा, नमो आदि जिनेश्वरं .. ४ निज साध्य साधक सुर मुनिवर. कोडीनंत ए गिरिवरं मुक्तिः रमणी वर्या रंगे, नमो आदि जिनेश्वरं.....५ पाताल नर सुरलोक मांही, विमल गिरिवर तो परं नहीं अधिक तीरथ तीर्थपति कहे, नमो आदि जिनेश्वरं...६ Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ७ ) एम विमल गिरिवर शिखर मंडन, दुःख बिहंडण ध्याइए निज शुद्ध सत्ता साधनार्थ, परम ज्योति निपाइए.... ७ जीत मोह कोह विछोह निद्रा, परमपद स्थिति जयकरं, गिरिराज सेवा करण तत्पर, पद्मविजय सुहितकरं ....८ जंकिची -नमुत्थुणं - जावंति - खमासमण - जावंत नमोऽर्हत् । श्री आदिनाथजी का स्तवन शेत्रुजा गढ़ना वासी रे, मुजरो मानजो रे सेवकनी सुणी वातो रे, दिलमां धारजो रे में दीठो तुम देदार, प्रभु आज मने उपन्यो हरख अपार : साहिबानी सेवा रे, भवदुःख भांगशे रे...१ आंकड़ी एक अरज अमारी रे, दिलमां भारजो रे, चोरासी लाख फेरा रे दूर निवारजो रे । प्रभु मने दुर्गति पडतो राख, प्रभु मवे दरिशन वहेलु दाख... साहिबा २ दोलत सवाइ रे सोरठ देशनी रे बलिहारी जाउं रे, प्रभु तारा वेशनी रे, प्रभु तारू रुडु दीठु रूप, मोह्मा सुरनर वृन्दने भूप... साहिबा ३ Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (८) तीरथ को रे, शेत्रुजा सारिखुरे, वचन पेखीने कीधु में पारखु रे, ऋषभ ने जोई जोई हरखे जेह, त्रिभुवन लीला पामे तेह....साहिबा....४ भवोभव मांगु रे प्रभु ताहरी सेवना रे, ___ भावठ न भांगे रे जगमा जे विना रे, प्रभु मारा पुरजो मनना कीड, एम कहे उदय रतन कर जोड . साहिबा ....५ जयवीय राय, अरिहंत चेइयाणं, अन्नत्थ,१ नवकार काउस्सग करके थोय कहना श्री आदिनाथजी की थोय शत्रुजय मंडन रिसह जिनेसर देव, सुरनर विद्याधर जेहनो सारे सेव । सिद्धाचल शिखरे सोहाकर शृगार, श्री नाभिन रेसर मरूदेवीनो मल्हार । रायण पगला सामने की स्तुति आनन्द आजे उपन्यो, पगला जोया जे आपना, अंतरतलेथी भागता जे, सुभटो रहया पापना । जे काल में विषे प्रभुजी, आप आवी समोसर्या, धन जीव ते धन जीव ते, दर्शन लही भवजलतर्या....१ Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ९ ) पुरव नवाणु वार पधारी, पाक कीधु जे भुमितलने दर्शन करता भव्यजीवोना, दूर करे अंतरमल मे त्रीजो आरो समरण करता, ऋषभदेव साक्षात् धरे प्रणमुळे भावे ते पगलाने, पातिक मारा दूर करे''''२ रायण रूख तले बिराजी जगने, संदेश जे आपतां आदीश्वर जिनरायना जे पगला पापो सवि कापता ऋषभसेन प्रमुख सेवी पगला, शाश्वत सुखे महालता बंदु एवा ऋषभ जिन पगला, जंजाल जाल जे टालता ... ३ रायण पगला का चैत्यवंदन आदि जिनेश्वर रायना, छे पगला मनोहार भाव सहित भक्ति करे, पहोंचाडे भवपार....१..... रायण रुख तले बिराजी, दोए जगने संदेश भवियण भावे जुहारीए, दूर करे संकलेश....२.... पगले पडीने विनवु, पूरजो मारी आश ज्ञान तणी विनति सुणो, देजो शिवपद वास ....३.... जंकिची -नमुत्थुणं - जावंति - खमासमण - जावंत - नमोऽर्हत् रायण पगला का स्तवन जीनजी आदीश्वर अरिहंत के पगला इहां धर्या रेलोल आंकड़ी जीनजो पूर्व नव्वाणु वार के आवी समोसर्या रे लोल जीनजी सुरतरु सम सहकार के रायण रुअडा रे लोल ... १ Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१०) -- जोनजी नीरखी हरख जेह के, भांगे भूखडा रे लोल जीनजी निरमल शीतल छांयके, सुगंधी विस्त रे रे लोल....जी.२ जीनजी अधिष्ठायक देव के, सदा हित साधता रे लोल जीनजी हलुकर्मी हरखाय के, अमरफल बांधता रे लोल....जो३ जीनजी मधुरी मोहन बेल के, कलियुगमा खडी रे लोल जोनजी सेवे संत महंत के त्रिभुवनमां वडो रे लोल""जी.४ जोनजी पुण्यवंत जे मानवी, ते आवी चढ़े रे लोल जीनजी शुभगति बांवे आयुष के नरके नवि पडे रे लोल....जी.५ जोनजी प्रभु पगला सुपसाय के सुपूजोत सदा रे लोल जीनजी महोटानो अनुयोग के, आपे संपदा रे लोल....जी.६ जोनजी सूर्यकान्त मणि जेमके सूर्यप्रभा घरे रे लोल जोनजी पामी स्वामि संग के रंगप्रभा घरे रे लोल..."जी७ जीनजो सफल क्रियाफलदायके मोक्षफल आपजो रे लोल जीनजी सफल क्रियाविधिछाप के निरमल छापजोरे लोल.,.जी;८ जीनजी धर्मरत्न पद योग क अमर थाउं सदा रे लोल जीनजी आशीर्वाद आ वाद के देजो सर्वदा रे लोल....जो.९ जयवीय राय-3.रिहंत चेइयाणं अन्नत्थ १ नवकार- काउस्सग्ग Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ११) Panasana: - - - - - - - - रायण पगले थोय श्री शत्रुजय मंडन आदि देव हु अहोनिश सारू तास सेव रायण तले पगला प्रभुजी तणां । सकल फुले पूजीश सोहामणा....१.... पुंडरिकस्वामी की स्तुति भावोल्लास भरीने मुज मन मां, आवी उभो तुज कने उछले भावतरंग रंग हृदये मूर्ति वसो मुज ममे पाम्या भाविक भक्त भाव घरीने, विमुक्ति जे नामथो एवा श्री पुंडरिक स्वामी चरणे, वंदु सदा भावथी....१ पंडरोक तारू दर्शन करतां हैयुमारू अति हरखाय पुंडरीक तारू मुखडुजोतां, आनंद हैये अति उभराय पुडरिक तारू नाम जपंता, पापकर्म सवि दूर पलाय पुडरिक तारे चरणे वंदू, शाश्वत सुखने जेम वराय....२ दर्शन प्रभु करवा भणी, तुज पासे आवीने रह्यो पुडरीक एहवा नामथो, शास्त्रो तणे पाने कह्यो पुंडरीक वत् पुंडरीक वन्या कोडी पांचने साथे, लह्या पुंडरीक नमु पुडरिक जपु ए ओरता मनमा रह्या....३ Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - पुंडरिकस्वामी का चैत्यवंदन आदीश्वर जिनरायनो, पहेलो जे गणधार पुंडरीक नामे थयो, भविजनने सुखकार....१.... चैत्री पुनमने दिने, केवलसिरि पामी इणगिरि तेहथी पुडरिक, गिरि अभिधां पामी....२.... पंच कोडि मुनिशुलह्या, करो अनशन शिवठाम ज्ञान विमल कहे तेहना, पय प्रणमा अभिराम...३.... जंकिची नमुत्थुणं जावंती-खमासमण जावंत नमोऽहत् पुंडरिकस्वामी का स्तवन धन धन पृडरिक स्वामोजी, भरत चक्री नृप नंद रे, दीक्षा ग्रहि प्रभु हाथथी, पूजीत गणधर वद रे....धन....१ आदि जिन वचन कमल थकी, निसुणी सिद्धाचल महिमा रे । आव्या गिरिवर भेटवा, विस्तार्यो तीर्थनो महिमा रे....धन....२ पावन पुरूष पसायथी पृथ्वी पवित्र थइ जाय रे, तेहथी पुडरिक नामथी, आज लगे पूजाय रे....धन....३ पद्मासन प्रतिमा बनी, प्रभु सन्मुख सोहाय रे पूजा विविध प्रकारनी, करतां भवि समुदाय रे....धन....४ अवितह वागरणा कह्या, अजिन जिन संकाशा रे धर्मरत्न पद आपजो, मुज मन मोटी आशा रे....धन....५ Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१३) जयवीयराय, अरिहंत चेइयाणं, अन्नत्थ-१ नवकार काउस्मग्ग पुंडरीक स्वामी को थोय भरहेसर भदंत, ऋषभजिनेसर शीस पुंडरीक गणाधिप, प्रणमनामी सोस चैत्री पुनमदिन विमलाचल गिरिशृग, पंचमगति पाम्या, पंचकोडि मुनिसंग....१.... घेटी पगला सामने बोलने को स्तुति श्री सिद्धाचल निरखी हरखे, आंखडी एनी पावन थाय पगले पगले आगल वधतां, काया एनी निरमल थाय घेटी जइने पगला पूजे, आनन्द हैये अति उभराय सुषम दुषम आरे रहेला, आदि प्रभुनु समरण थाय....१ आतपरनी तलेटीथी, जे भवि यात्रा करे घेटी पगले शीश नमावी, सिद्धगिरि पर फरे नवाणु नी यात्रा करता, नव वखत निश्चे करे घेटी पगले भाव भक्ति, पुण्य भाथु ते भरे....२ आदि प्रभनु दर्शन करीने घेटी पाये जे नर जाय तन मन केरा जे संतापो, प्रभु पगले सवि दूर जाय एवा पगले आवी प्रभुजी, अरज करू छु हे जिनराय आदीश्वर तुज ध्यान धरता, जन्ममरणना फेरा जाय...३ Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१४) घेटी पगला का चेत्यवंदन सर्वतीर्थ शिरोमणी, शत्रुजय सुखकार घेटो पगलां पूजतां, सफल थाय अवतार....१ पूर्व नवाणु पधारीया, जिहां श्री अरिहंत ते पगलां ने वंदिए, आणि मन अतिखंत...२ चोविहारो छ8 करी, घेटी पगले जाय धर्मरत्न पसायथी, मन वांलित फल थाय जंक्चिी नमुत्युणं जावंति-खमासमण जावंत नमोऽहत् घेटी पगला का स्तवन मेरे तो प्रभजी ले चल घेटी पाय, आदीश्वरना दशन करीने, वंदु घेटी पाय....मेरे....१.... लोली हरियाली वचमां देरी, सोहे ऋषभना पाय,..मेरे....२ रागद्वषनी ग्रंथी भेदे, पूजे आदिजिन पाय....मेरे....३.... प्रथम प्रभुना ध्यान प्रभावे, यात्रा सुखभर थाय....मेरे....४.... धर्मरत्न जिन गिरि गुण गाता, भवनी भावठ जाय मेरे....५.... जयवोयराय, अरिहंत चेइयाणं अन्नत्थ-१ नवकार, काउस्सग्ग घेटी पगले थोय आगे पूरव वार नवाण, आदि जिनेसर आयाजी शत्रुजय लाभ अनंतो जाणी, वॅदु तेहना पायाजी जगबंधव जगतारण ए गिरि, वीठा दर्गति वारेजी यात्रा करंता छ'री पाले, काज पोताना सारेजो....१ Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१५) श्री शत्रुजय तीर्थ का गुणभित २१ खमासमण.... सिद्धाचल समरू सदा, सोरठ देश मोझार, मनुष्य जन्म पामी करी, वंदु वार हजार । अंग वसन मन भुमिका, पूजोपगरणसार, न्याय द्रव्यविधि शुद्धता, शुद्धि सात प्रकार । कातिक सुदि पुनम दिने, दश कोटि परिवार, द्राविड ने वारिखिल्लजी, सिद्ध थया निरधार । तिण कारण कार्तिक दिने, संघ सयल परिवार, आदिजिन सन्मुख रही, खमासमण बहुवार । एकवीश नामे वर्णव्यो, तिहां पहेलु अभिधान, शत्रुजय शुकरायथी, जनक वचन बहुमान । सिद्धाचल समरु सदा, सोरठ देश मोझार, मनुष्य जन्म पामी करी, वंदु वार हजार । ....१ ( यह दुहा प्रत्येक दुहा के अंते बोलकर खमासमण देना ) समोसर्या सिद्धाचले, पुण्डरीक गणधार, लाख सवा महातम कह्यू, सुरनर सभा मोझार । चैत्रो पुनम ने दिने, करो अनशन एक मास, पांच कोडि मुनि साथ शु मुक्ति निलयमा वास । Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१६) तिणे कारण पुण्डरीक गिरि, नाम थयु विख्यात, मन वच काये वंदीए, उठी नित्य प्रभात.... सिद्धा २ वीश कोडि शु पांडवा, मोक्ष गया इणे ठाम, एम अनन्त मुकते गया, सिद्धक्षेत्र तिणे नाम.... सिद्धा ३ अड़सठ तीरथ न्हावतां, अंगरंग घडी एक, तुबी जल स्नाने करी, जाग्यो चित्त विवेक । चन्द्रशेखर राजा प्रमुख, कर्म कठीन मलधाम, अचलपदे विमला थयां, तिणे विमलाचल नाम.... सिद्धा ४ पर्वतमां सुरगिरि वडो, जिन अभिषेक कराय, सिद्ध हुआ स्नातक पदे, सुरगिरि नाम धराय । भरतादिक चौद क्षेत्रमां, ए समो तीरथ न एक, तिणे सुरगिरि नामे नमु, जिहां सुरवास अनेक.... सिद्धा ५ एंशी योजन पृथुल छे, उंचपणे छब्बीश, महिमाए मोटो गिरि, महागिरि नाम नमीश.... सिद्धा ६ गणधर गुणवंता मुनि, विश्व माहे वंदनिक, जेहवो तेहवो संयमी, विमलाचल पूजनीक । विप्रलोक विषधर समा, दुःखोया भूतल मान, द्रव्यलींग कण क्षेत्र सम, मुनिवर छीप समान । Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १७ ) श्रावक मेघ समा कह्यां, करतां पुण्य नु काम, पुण्यनी राशी वधे घणी, तिणे पुण्यराशि नाम.... सिद्धा.... ७ संयमघर मुनिवर घणां, तप तपतां एक ध्यान, कर्म वियोगे पामिया, केवल लक्ष्मी निधान । लाख एकाणुं शिववर्या, नारद शुं अणगार, नाम नमो तिणे आठमु श्रीपदगिरि निरधार.... सिद्धा.....८ श्री सीमंधर स्वामीए, ए गिरि महिमा विलास, इन्द्रना आगे वर्णव्यो, तिणे ए इन्द्र प्रकाश.... सिद्धा....९ दश कोटि अणुव्रतधरा, भक्ते जमाडे सार, जैन तीर्थ यात्रा करे, लाभ तणो नहीं पार | तेह थको सिद्धाचले, एक मुनि ने दान, देतां लाभ घणो हुए, महातीरथ अभिधान.... सिद्धा....१० प्रायः ए गिरि शाश्वतो, रहेशे काल अनन्त, शत्रुंजय महातम सुणी, नमो शाश्वत गिरि संत.... सिद्धा....११ गौ नारी बालक मुनि चउ हत्या करनार, यात्रा करतां कार्तिकी, न रहे पाप लगार । ज परदारा लपटी, चोरी ना करनार, देव द्रव्य गुरू द्रव्यनां, जे वली चोरणहार । Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १८) सदम, चैत्री कार्तिकी पुनमे, करे यात्रा इणे ठाम, तप तपतां पातिक गले, तिणे द्रढ शक्ति नाम...सिद्धा....१२ भवभय पामी नीकल्या, थावच्चा सुत जेह, सहस मुनि शुशिववर्या, मुकितनिलयगिरि तेह....सिद्धा....१३ चन्दा सुरज बिहु जणां, उभा इणे गिरि शृग, वधावीयो वर्णन करी, पुष्पदंत गिरि रंग....सिद्धा....१४ कर्म कठीन भवभय तजी, इहां पाम्यां शिवसद्म, प्राणी पद्म निरंजनो, वदो गिरि महापद्म....सिद्धा....१५ शिव वह विवाह उत्सवे, मंडप रचियो सार, मुनिवर वर बेठक भणी, पृथ्वी पीठ मनोहर....सिद्धा....१६ श्री सुभद्र गिरि नमो, भद्र ते मंगल रूप, जल तरू रज गिरिवर तणी, शिश चढ़ावे भूप....सिद्धा....१७ विद्याधर सुर अपच्छरा, नदी शेजो विलास, करतां हरतां पापने, भजीये भवि कैलास....सिद्धा....१८ बीजा निर्वाणि प्रभु. गई चोवीशी मोझार, तस गणधर मुनिमां वडा, नामे कदंब अणगार । प्रभ वचने अनशन करी, मुक्तिपुरिमां वास, नामे कदंबगिरि नमो, तो होय लील विलास....सिद्धा....१९ ' Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पाताले जस मूल छे, उज्वल गिरि नु सार, त्रिकरण योगे वंदतां, अल्प होय संसार....सिद्धा....२० तन मन धन सुत वल्लभा, स्वर्गादि सुखभोग, जे वंछे ते संपजे, शिवरमणी संयोग, विमलाचल परमेष्ठिनु, ध्यान धरे षट्मास तेज अपूरव विस्तरे, पूरे सघली आश, त्रीजे भवे सिद्धिलहे, ए पण प्रायिक वाच उत्कृष्टा परिणामथो, अंतरमुहुरत साच, सर्व कामदायक नमो, नामे करी ओलखाण श्री शुभवीर विजय प्रभु, नमतां क्रोड कल्याण....सिद्धा....२१ ___ श्री शत्रुजय यात्रा विधी यहां समाप्त होती है। तलेटोए बोलने का स्तवन गिरिवरियानी टोचे जगगुरु जई वस्या ललचावो लाखोने, लेखे न कोइ रे आवो तलाटीने तलिये टलवलु एकलो सेवक पर जरा महेर करीने देखो रे गिरि...१.... काम दामने धाम नथी हु मांगतो मांगु मांगण थइने चरण हजुरजो काया दुर्बल छे ते प्रभुजी जाणजो आप पधारो दीलडे दीलडां पूरजो गिरि....२.... Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२०) जन्म लोधो तें दुःखीयाना दुःख टालवा, ते टालीने सुखीया कीधा नाथजो तुम बालकनी पेरे, हु पण बालुडो नमो विनमी ज्यु, धरजो मारो हाथजो....गिरि....३.... जिमतिम करी पण आ अवसर आवी मल्यो स्वामी सेवक सामा सामी थाय जो वखत जवानो भय छे मुजने आकरो, दर्शन दियो तो लाखेणा कहेवाय जो....गिरि....४ पांचमे आरे प्रभजो मलवा दोह्यला तो पण मलीयां भाग्य तणो नहि पारजो उवेखो नहि थोड़ा माटे साहिबा एक अरजने मानी लेजो हजार जो....गिरि......... सुरतरू नाम धरावे, पण ते शु करू साचो सुरतरू तु छे दीन दयालजो मन गमतुं दई दानने भवभय वारजो साचा थाशो षट्काय प्रति पालजो....गिरि....६.... करगरू तो पण करूणा जो नहि लावशो लंछन लागे संघपति नाम धरावी जो केडे वलग्यां ते सहुने सरखा कर्या, धीरज आपो, अमने भगत ठरावीने....गिरि....७.... Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२१) - - नाभि नरेसर नंदन आशा पूरजो रहे जो हृदयमां सदा करीने वासजो कांति विजयने आतम पद अभिराम छे, सदा सोहागण थाये, मुक्ति विलासजो....गिरि....८.... तलाटीए बोलने का स्तवन यात्रा नवाणु करीए विमलगिरि, यात्रा नवाणु करीए पूर्व नवाणु वार शेत्रुजा गिरि, ऋषभ जिणंद समोसरोए विमलगिरि यात्रा....१.... कोडी सहस भव पातक त्रुटे, शेत्रुजा सामो डग भरिए विमलगिरि यात्रा....२.... सात छठ्ठ दोय अठ्ठम तपस्या, करी चड़ीए गिरिवरीए विमलगिरि यात्रा....३.... . पुडरिक पद जपीए मन हरखे, अध्यवसाय शुभ घरीए विमलगिरि यात्रा....४.... पापी अभवि नजरे न देखे, हिंसक पण उद्धरीए विमलगिरि यात्रा....५.... भूमि संथारोने नारी तणो संग, दूर थकी परिहरीए विमलगिरि यात्रा...६.... सचित्त परिहारीने एकल आहारी, गुरु साथे पद चरीए विमलगिरि यात्रा....७.... Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२२) पडिककमणां दोय विधिशु करीए, पाप पडल विखरीए विमलगिरि यात्रा....८.... कलिकाले ए तिरथ मोटु, प्रवहण जेम भर दरिए विमलगिरि यात्रा....९.... उत्तम ए गिरिवर सेवंता, पद्म कहे भव तरीए विमलगिरि यात्रा....१०.... श्री शांतिनाथ प्रभ का स्तवन शांति जिनेश्वर साहिबा रे, शांति तणा दातार अंतरजामी छो माहरां रे, आतमनां आधार....शाति....१ चित्त चाहे प्रभु चाकरी रे, मन चाहे मलवाने काज नयन चाहे प्रभु निरखवां रे, द्यो दारशन महाराज.शांति.२ पलक न विसरू मनथकी रे, जेम मोरा मन मेह, एक पखो केम राखोये रे, राजकपटनो नेह....शांति....३ नेह नजर निहालतां रे, वाधे बमणो रे वान अखुट खजानो प्रभु ताहरो रे, दीजिए वांछित दान........४ आशा करे जे कोई आपनी रे, नवि करीए निराश सेवक जाणी ताहरो रे, दोजिये तास दिलास....शांति....५ दायकने देतां थकां रे, क्षण नवि लागे रे वार काज सरे निज दासनां रे, ए मोटो उपकार....शांति....६ एवं जाणीने जगघणी रे, दीलमांही धरजो रे प्यार रूप विजय कविरायनो रे, मोहन जय जयकार....शांति,..७ Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २३ ) श्री शांतिनाथ प्रभु का स्तवन सुणी शांतिजिणंद सोभागी हुं तो धयो छु तुम गुणरागी तुमे निरागी भगवंत, जोतां किम मलशे तंत.... सुणो.... १ हुत क्रोध कषायनो भरीयो, तुरंतो उपसम रसनो दरियो हु तो अज्ञाने आवरीयो, तुरंतो केवल कमला वरीयो. सुणो....२ हु तो विषयारसनो आशी, तें तो विषया कीधी निराशी हु तो कर्मना भारे भरियो,तुं तो प्रभु पार उतरीयो. सुणो....३ हु तो मोहतणे वश पडीयो, तें तो सबलां मोहने हणीयो हु तो भव समुद्रमां खुच्यो, तुरंतो शिव मंदिरमां पहुंच्यो....४ मारो जन्म मरणनो जोरो, तें तो तोड्यो तेहनो दोरो मारो पास न मेले राग, तमे प्रभुजी थया वीतराग... सुनो.... ५. मने मायाए मुक्यो पासी, तुतो निरबंधन अविनाशी हु तो समकित थी अधुरो, तुरंतो सकल पदारथे पुरो सुणो.....६ म्हारे तो प्रभुजी तु एक, त्हारे मुज सरीखा अनेक हु तो मनथीन मुकुमान, तुरंतो मानरहित भगवान. सुणो....७ मारु कीधु कशु नवि थाय, तुरंतो रंकमे करे छे राय एक करो मुज महेरबानो, म्हारो मुजरो लेजो मानी. सुणो.....८ Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २४ ) एक वार जो नजरे निरखो, तो सेवक थाये तुम सरीखो, जो सेवक तुम सरोखो थासे, तो गुण तुमारा गाशे....मुणो....९ भवोभव तुम चरणोनी सेवा, तो मांगु छुदेवाधिदेवा. सामुजुवोने सेवक जाणी, एवी उदय रत्ननी वाणो.. सुणो....१० पुंडरीक स्वामी का स्तवन एक दिन पुंडरिक गणधरू रे लाल पुछे श्री आदिजिणंद सुखकारी रे, कहीये ते भवजल उतरी रे लाल, पामीश परमानन्द भववारी रे....एक.... १ कहे जिन इण गिरि पामशो रे लाल, नाण अने निरवाण जयकारी रे, तीरथ महिमा वाघशे रे लाल, अधिक अधिक मंडाण निरधारी रे....एक.... २ इम निसुणी तिहां आवीया रे लाल, घाती करम कर्या दूर तम वारी रे, पंच क्रोड मुनि परिवाँ रे लाल, हुआ सिद्धि हजुर भववारी रे....एक.... ३ चैत्री पुनम दिने कीजीए रे लाल, पूजा विविध प्रकार दिलधारी रे, Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २५ ) फल प्रदक्षिणा काउस्सग्गा रे लाल, लोगस्स थुई नमुक्कार नरनारी रे.... एक.... ४ दश वीश त्रीस चालीश भला रे लाल, पचास पुष्पनी माल अति सारी रे, नरभव लाहो लोजीये रे लाल, जेम होय ज्ञान विशाल मनोहारी रे.... एक.... ५ पुंडरीक स्वामी का स्तवन मेरे तो जोन तेरो ही चरण आधार..... पुंडरिक गणधर पुंडरिक पद धर पुंडरीक पद करनार.... मेरे..... १..... पुंडरीक गिरि पर पुंडरिक राजीत पुंडरीक प्रभुनो विहार.... मेरे..... २.... पुंडरीक कमलासन प्रभु राजीत पुंडरिक कमलनो हार....मेरे.... ३.... पुंडरीक गाउं पुंडरीक ध्याउं पुंडरिक पुंडरीक हृदय मोझार....मेरे.... ४.... स्वरूपी पुंडरीक कांति जयकार....मेरे.... ५..... आतमराम Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२६) रायण पगला का स्तवन नोलुडी रायण तरू तले सुण सुन्दरी, पोलुडा प्रभुना पाय रे गुण मंजरी उज्वल ध्याने ध्याइये, सुण सुन्दरो, एही ज मुकित उपाय रे गुण मंजरो.... १.... शीतल छायड़े बेसीने, सुण सुन्दरी, रातडो करी मन रंग रे गुण मंजरी पूजीए सोवन फुलडे, सुण सुन्दरी, जेम होय पावन अंग रे गुण मंजरी.... २.... खीर झरे जे उपरे, सुण सुन्दरी, नेह धरी ने एह रे गुण मंजरी प्रोजे भवे ते शिव लहे, सुण सुन्दरी, थाये निमल देह रे गुण मंजरी.... ३.... प्रीती धरी प्रदक्षिणा, सुण सुन्दरी, - दीये एहने जे सार रे गुण मंजरी अभंग प्रीति होय जेहने, सुण सुन्दरी, भवभव तुम आधार रे गण मंजरी.... ४.... कुसुम पत्र फल मंजरी सुण सुन्दरी, ___शाखा थड़ ने मुल रे गुण मंजरी Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २७ ) देवतणा वासाय छे सुणसुदरी तीरथ मे अनुकुल रे गुणमंजरी.... ५.... तीरथ ध्यान धरो मुदा सुणसु दरो सेवो एहनी छाय रे गुणमंजरी ज्ञान विमल गुण भालीयो सुणसुंदरी शत्रु जय महात्मय माय रे गुणमंजरी .... ६.... रायण पगला का स्तवन मेरे तो जाना शीतल रायण छाय ..... मरूदेवीनंदन अर्चित चंदन, रंजीत ऋषभना पाय.... मेरे...... नीलवरण दल निरमल माला, शिववधू खडी रही आय. मेरे.... २ क्यारी कपूर सुधारस सिंची, मानु हामगीरि राय.... मेरे ....३ सुरतरू सुरसम भोग को दाता, यह निजगुण समुदाय. . मेरे .... ४ आतम अनुभव रस इहां प्रगटी, कांति सुरनदी काय.... मेरे.....५ आदिजिन स्तवन सिद्धगिरि मंडन पाय प्रणमीजे, रीसहेसर जिनराय नाभिभूप मरूदेवा नंदन, जगत जंतु सुखदाय स्वामी तुम दरिशन सुखकार तुम दरिशनथी समकित प्रगटे, निजगुण ऋद्धि उदार रे.... Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २८ ) भारे कर्मी ते पण तार्या, भवजलधिथी उगार्या, मुज सरिखाने किम न संभार्या, चित्तथी केम उतार्या रे .स्वा. २ पापी अभवि पण तुम सुपसाये, पाम्यां गुण समुदाय अमे पण तर शरण स्वीकारी, महेर करो महाराय रे. स्वा. ३ तरण तारण जगमांही कहावो, हु छु सेवक ताहरो, अवर आगल जइने केम यांचु महिमा अधिक तुमारो.रे. स्वा४ मुज अवगुण रहामुळे मत जुओ, बिरूद तमारू' संभालो पतित पावन तुमे नाम धरावो, मोह विटंबना टालो रे. स्वा. ५ पूरव नवाणु वार पधारो, पवित्र कयुं शुभ धाम साधु अनंता कर्म खपावी, पहोच्या अविचल ठाम रे. स्वा. ६ श्री नयविजय विबुध पय सेवक, वाचक जस कहे साचु विमलाचल भूषण स्तवनाथी, आनंद रंगभर माचु रे.स्वा. ७ आदिजिन स्तवन जीरे आज सफल दिन माहरो दीठो प्रभुनो देद र लय लागी जीनजी तणी, प्रगटयो प्रेम अपार......... (१) घडी न विसरु' साहिबा, साहिबा घणो रे सनेह अंतरजामी छो माहरा, मरूदेवी ना नंद, सुनंदानां कंत....घडी १ जीरे लघु थइ मन मारू' तिहां रहा, तमारी सेवाने काज ते दिन क्यारे आवशे, होथे सुखनो आवास.... घडी....२ Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २९) जीरे प्राणेश्वर प्रभुजी तमे, आतमनां रे आधार मारे प्रभुजी तुमे एक छो, जाणजो निरधार....घडी....३ जीरे एक घडो प्रभु तुम बिना, जाय वरस समान प्रेमविरह हवे केम खमु, मानुवचन प्रमाण....घडी....५ जोरे अंतरगतनी वातडो, कहो कोने कहेवाय, वालेसर विशवासीया, कहेता दुःखजायसुणता सुख थाय....घडी: जोरे देव अनेक जगमां वसे, तेनी रिद्धी अनेक तुम विण अवरने नविनमुएवो मुज मनटेक....घडो...६ जीरे पंडित विवेक विजयतणो, प्रणमे शुभ पाय हरखविजय श्री ऋषभनां, जुगते गुण गाय....घडो....७ सिद्धाचल का स्तवन ( भावगीत ) सिद्धाचल की भक्ति रचा सुख पा .. लु.....रे, कर आदिनाथ को वंदन पाप खपा लुरे.... जो कोयलड़ी बन जाउं, प्रभुजी के गाने गाउ मैं दिनानाथ को रीझा रीझाकर, अपना भाग जगालु। शिवसुख पा लु रे....कर....१ जो मोर कई बन जाउं, प्रभु आगे नृत्य रचाउं रावण को तरह से तीर्थकर पद पूजी एक कमालु शिवसुख पा लुरे कर...२ Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३०) - - - इस गिरिका एक एक कंकर, हीरे से मुल्य है बढ़कर कोई चतुर जहोरी अगर मीले तो, सच्चा मोल करालु शिवसुख पा लुरे....कर....३ . शत्रुजय शत्रु विनाशे, आतमाकी ज्योति प्रकाशे, मैं भावभक्ति के नीर में अपना जोवन वस्त्र रंगालु शिवसुख पा लुरे....कर....४ तपको दिवार बना लुसमता का द्वार चिनालु, जहां रागद्वेष नहीं घुसने पाये, ऐसा महेल बनालु शिवसुख पा लुरे कर....५ कातिक पुनम दिन आवे, मन यात्रा को ललचावे, मैं रामधर्म का नीर सिंचकर, अपना बाग खिलालु शिवसुख पा लुरे....कर....६ घेटी पगला का स्तवन ऋषभ जिणंदा कृपा करीने, घेटी दरिशन दीजो आज मोहे घेटी दरिशन दीजो घेटी पाय उतरता मारा पाप मेवासी खीजो....आज....१ अगुरू धूप करी चंदन पूजी, अमृतरस में पीजो....आज....२ आरती दीप करंता में तो, पुन्य भंडार भरीजो....आज....३ ता ता थे थे नाच करंता मैं ने भावस्तव भलो कीजो..आज,.४ आदि प्रभुनुध्यान धरंता, ज्ञान विमलने लीजो....आज....५ Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३१) - शत्रंजय तोर्थयात्रा भावना-स्तवन कोई सिद्धगिरि राज भेटावे रे, वंदावे रे, बतलावे रे, गवरावे रे, पूजावे रे, नागर सज्जना रे, दैत्य समानने अरियसमान रे,जे तारे द्वार आवे रे, नागर....१ अतिही उमाह्योने बहु दीन वहीयो रे, मानवना वृन्द आवे रे....नागर....२ धवल देवलोयाने सुरपति मलोया रे, चारोही पाग चढ़ावे रे....नागर....३ नाटक गीत ने तुर वागे रे, कोई सरगम नाद सुणावे रे....नागर....४ श्री जिन नोरखीने हरखित होवे रे, तृषित चातक जल पावे रे....नागर....५ धन धन ते नरपतिने गहपति, के इ संघपति तिलक धरावे रे....नागर....६ सकल तीरथमांहि समरथ ए गिरि; . ___ केइ आगमपाठ बतावे रे....नागर....७ बेर बेठा पण ए गिरि ध्यावो रे, ज्ञानविमल गुण गावे रे....नागर...८ Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ३२) शंत्रुजय तीर्थयात्रा भावना स्तवन प्रभुजी जाबु पालीताणा शहेर के मन हरखे घणु रे लो, प्रभुजी संघ भलेरा आवे के ए गिरि भेटवा रे लो....प्र....१ प्रभुजो आव्यु पालीताणा शहेर, तलाटी शोभती रे लो, प्रभुजी डंगरीये चढंत के हैये हेज घणु रे लो....प्र....२ प्रभुजी आन्यो हिंगलाजनो हडो के के.डे हाथ दइ चढ़ो रे लो, प्रभुजी आव्यो छालो कुड के, शीतल छांयडी रे लो....प्र....३ . प्रभुजी आबो रामज पोल के सामे मोतीवसी रे लो मोतीवसी दिसे झाकझमाल के जोवानो जुक्ति भली रे लो..४ प्रभुजी आवी वाघणपोल के डाबा चकैसरी रे लो, चककेसरी जिनशासन रखवाल, के संघमां सांनिध्य करे रे लो.५ प्रभुजी आवी हाथणपोल के सामा जगघणी रे लो, प्रभुजी नुमुखडु पुनम केरो चंद के मोह्या सुरपति रे लो...६ प्रभुजी मुल गभारे आवी के आदीश्वर भेटीया रे लो, आदीसर भेटे भवदुःख जाय के, शिवसुख पामीये रे लो....७ प्रभुजी नहीं रह तुमथी दूर के, गिरिपंथे वस्यो रे लो एवो वीरविजयनी वाणी के शिवसुख आपजो रे लो....प्र...८ Page #37 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - - - - - - श्री सिद्धगिरिजी के १०८ खमासमण श्री आदिश्वर अजर अमर, अव्याबाध भहोनिश, परमातम परमेसरु, प्रणमु परम मुनीश.... १.... जयजय जगपति ज्ञान भाण, भासित लोका लोक, शुद्ध स्वरुप समाधिमय, नमित सुरासुर थोक.... २.... श्री सिद्धाचल मंडणो, नाभि नरेसर नन्द, मिथ्यामति मत भंजणो, भावि कुमुदाकर-चन्द.... ३.... पूर्व नवाणु जस सिरे, समवसर्या जगनाथ, ते सिद्धाचल प्रण मिये, भकते जोडो हाथ.... ४.... अनन्त जीव इण गिरिवरे, पाम्पा भवनो पार, ते सिद्धाचल प्रणमिये, लहिये मंगल माल.... ५.... जस सिर मुकुट मनोहरू, मरूदेवीनो नन्द, ते सिद्धाचल प्रणमिये, रुद्धि सदा सुखवृन्द.... ६.... महिमा जेहनो दाखवा, सुगुरु पण मतिमंद, ते तीर्थेश्वर प्रणमिये, प्रगटे सहजानंद.... ७.... सत्ता धर्म समारवा, कारण जेह पडूर, ते तीर्थेश्वर प्रणमिये, नामे अघ सवि दूर.... ८.... कर्मकाट सवि टालवा, जेहनु ध्यान हुताश, थेश्वर प्रणमिये, पामीजे सुखवास.... ९.... Page #38 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ३४ ) परमानन्द दशा लहे, जस ध्याने मुनिराय, ते तीर्थेश्वर प्रणमिये, पातिक दूर पलाय.... १०.... श्रद्धा भासन रमणता, रत्नत्रयीनों हेतु. ते तीर्थेश्वर प्रणमिये, भव मकराकर सेतु.... ११..... महापापी पण निस्तर्या, जेहनु ध्यान सुहाय, ते तीर्थेश्वर प्रणमिये, सुरनर जस गुण गाय.... १२..... पुंडरिक गणधर प्रमुख सिध्या साधु अनेक, ते तीर्थेश्वर प्रणमिये, आणि हृदय चन्द्रशेखर स्वसा पति, जेहने संगे ते तीर्थेश्वर प्रणमिये, पामिजे निज विवेक..... १३.... सिद्ध, रिद्ध.... १४..... जलचर खेचर तिरिय सवे पाम्या आतम भाव, ते तीर्थेश्वर प्रणमिये, भवजल तारण नात्र..... ५..... संघ यात्रा जेणे करी, कोधा जेणे ते तीर्थेश्वर प्रणमिये, छेदिजे गति उद्धार, चार....१६..... थाय, पुष्टि शुद्ध संवेग रस, जेहने ध्याने ते तीर्थेश्वर प्रणमिये, मिथ्यामति सवि जाय.... १७.... सुरतरु सुरमणि सुरगवी, सुरघट सम जस ध्याव, तै तीर्थेश्वर प्रणमिये, प्रगटे शुद्ध स्वभाव.... १८..... Page #39 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३५) सुरलोके सुरसुन्दरी. भली मलो थोके थोक ते तीर्थेश्वर प्रणमिये, गावे जेहना श्लोक....१९.... योगीश्वर जस दर्शने, ध्यान समाधि लीन ते तीर्थेश्वर प्रणमिये, हुआ अनुभव रसलीन....२०.... मानुगगने सूर्य शशी, दिये प्रदक्षिणा नित्त । ते तीर्थेश्वर प्रणमिये, महिमा देखण चित्त....२१.... सुर असुर नर किन्न रा, रहे छे जेहनी पास ते तीर्थेश्वर प्रणमिये, पामे लील विलास....२२.... मंगलकारी जेहनी, मतिका हारी भेट ते तीर्थेश्वर प्रणमिये, कुमति कदाग्रह मेट....२३.... कुमति कौशिक जेहने, देखी झांखा थाय ते तीर्थेश्वर प्रणमिये, सवि तस महिमा गाय....२४.... मरजकुडना नीरथी, आधि व्याधि पलाय ते तीर्थेश्वर प्रणमिये, जस महिमा न कहाय...२५.... सुन्दर टुक सोहामणि, मेरु सम प्रासाद ते तीर्थेश्वर प्रणमिये, दूर टले विखवाद....२६.... द्रव्य भाव वैरी घणा, जिहां आव्ये होय शांत ते तीर्थेश्वर प्रणमिये, भांगे भवनी भ्रांत....२७.... Page #40 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ३६ ) जगत हितकारी जिनवरा, आव्या एणे ठाम, ते तीर्थेश्वर प्रणमिये, जस महिमा उद्धाम....२८..... नदी शेत्रु जो स्नानथी, मिथ्या मल धोवाय, ते तोर्थेश्वर प्रणमिये, सत्रि जनने सुखदाय.... २९..... आठ कर्म ने सिद्धगिरे, न दीये तीव्र विपाक; ते तीर्थेश्वर प्रणमिये, जिहां नवि आवे काक.... ३०..... सिद्धशिला तपनीयमय, रत्न स्फटीकनी खाण, ते तीर्थेश्वर प्रणमिये, पाम्या केवल सोवन रूपा रत्ननी, औषधि जात अनेक, ते तीर्थेश्वर प्रणमिये, न रहे पातक एक....३२.... संयमधारी संयमे, पावन होय जिण क्षेत्र, ते तीर्थेश्वर प्रणमिये, होवे निर्मल निर्मल नाण....३१..... नेत्र....३३.... श्रावक जिहां शुभ द्रव्यथी, उत्सव पूजा स्नात्र, ते तीर्थेवर प्रणमिये, पोषे पात्र साहमिवच्छल पुण्य जिहां, अनंतगणु ते तीथेंश्वर प्रणमिये, सोवन फुल सुन्दर यात्रा जेहनी, देखी हरखे ते तीर्थेश्वर प्रणमिये, त्रिभवन मांहे सुपात्र....३४..... कहेवाय, वधाय .. ३५.... चित्त; विदित.... ३६..... Page #41 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३७) - - पालीताणु पुरभल', सरोवर सुन्दर पाल ते तीर्थेश्वर प्रणमिये, जाये सकल जंजाल .. ३३ मतमोहन पागे चढ़े, पग पग कम खपोय, ते तीर्थेश्वर प्रणमिये, गुण गुणो भाव लखाय .... ३८ जेणे गिरि रुख सोहामणा, कुडे निर्मल नोर, ले तीर्थेश्वर प्रणमिये, उतारे भव तीर .... ३९ मुक्ति मंदिर सोपान सम,सुन्दर गिरिवर पाज, ते तीर्थेश्वर प्रणमिये, लहिये शिवपुर राज .... ४० कर्म कोटि अघ विकट भट, देखी धजे अंग, ते तीर्थेश्वर प्रणमिये, दिन दिन चढ़ते रंग .... ४१ गोरी गिरिवर उपरे, गावे जिनवर गीत, ते तीर्थेश्वर प्रणमिये, सुखे शासन रीत .... ४२ कवड़जक्ष रखपाल जस, अहोनिण रहे हजुर, ते तोर्थेश्वर प्रणमिये, असुरां राखे दूर .... ४३ चित्त चातुरी चक्र केसरी विघ्नविनासण हार, ते तीर्थेश्वर प्रणमिये, संघ तणो करे सार .... ४ सुरवरमां मघवा थया, ग्रहगणमां जिमचन्द, ते तीर्थेश्वर प्रणमीये, तिम सवि तीरथ इंद्र .... ४५ Page #42 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ३८) दोठे दुर्गति वारणो, समर्यो सारे काज; ते तीर्थेश्वर प्रणमिये, सवि तीरथ शिरताज .... ४६ पुंडरिक पंच कोडीशु, पाम्या केवलनाण, ते तोर्थेश्वर प्रणमिये, कर्मतणी होय हाण .... ४७ मुनिवर कोडी दस सहित,द्राविड ने वारिखेण, ते तोर्थेश्वर प्रणमिये, चढ़िये शिव निश्रेण .... ४८ नमि विनमि विद्याधरा,दोय कोडि मुनि साथ, ते तीर्थेश्वर प्रणमिये, पाम्या शिवपुर आथ .... ४९ ऋषभवंशीय नरपति घणां, इण गिरि पहोता मोक्ष ते तीर्थेश्वर प्रणमिये, टाल्या पातिक दोष .... ५० राम भरत बिहु बांधवा, त्रण कोडि मुनि युत्त, ते तीर्थेश्वर प्रणमिये, इणे गिरि शिव संपत .... ५१ नारद मुनिवर निर्मला, साधु एकाणू लाख, ते तीर्थेश्वर प्रणमिये, प्रवचन प्रगट ए भाख .... ५२ शांब प्रद्युम्न ऋषि कहया, साडि आठ कोडि; ते तीर्थेश्वर प्रणमिये, पूरब कर्म विछोडी .... ५३ थावच्चासुत सहस शु, अनशन रंगे कीध, ते तीर्थेश्वर प्रणमिये, वेगे शिवपद लीध .... ५४ Page #43 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३९) शुक परिव्राजक वली, एक सहस अणगार, ते तोर्थेश्बर प्रणमिये, पाम्या शिवपुर द्वार .... ५५ से लगसूरि मुनि पाचसे, सहित हुआ शिवनाह, ते तीर्थेश्वर प्रणमिये, अंगे धरी उत्साह .... ५६ इम बहु सिध्या इणे गिरि, कहेता नावे पार, ते तीर्थेश्वर प्रण मिये, शास्त्रमाहे अधिकार .... ५.? बीज इहां समकित तणु, रोपे आतमभोम, ते तीर्थेश्वर प्रण मिये, टाले पातक स्तोम, .... ५.. ब्रह्म स्त्री भृण गो हत्या, प.पे भारित जेह, ते तीर्थेश्वर प्रणमिये, पहोता शिवपुर गेह .... ५६ जग जोतां तीरथ सवे, ए सम अवर न दीठ, ते तीर्थेश्वर प्रणमिये, तीर्थ मांहे उक्किट .... ६० धन्य धन्य सोरठ देश जिहां, तोरथ मांहे सार, ते तीर्थेश्वर प्रणमिये, जनपदमां शिरदार .... ६? अहोनिश आवत ढकडा, ते पण जेहने संग, ते तीर्थेश्वर प्रणमीये, पाम्या शिव वधु रंग .... ६२ विराधक जिन आणना, ते पण हुआ विशुद्ध. ते तीर्थेश्वर प्रणमिये, पाम्या निर्मल वुद्ध .... ६३ Page #44 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ४० ) माह म्लेच्छ शासन रिपु, ते पण हुआ उपसंत, ते तीर्थेश्वर प्रणमिये, महिमा देखी अनंत .... ६४ मंत्र योग अजन सवे, सिद्ध हवे जिन ठाम, ते तीर्थेश्वर प्रणमिये, पातक हारी नाम .... ६५ नुमति सुधारस बरसते, काम दावानल संत, ते तीर्थेश्वर प्रणमिये, उपशम तस उपसंत .... ६६ अतधर नितु नितु उपदिशे, तत्त्वातत्त्व विचार, ते तीर्थ श्व र प्रणमिये, ग्रहे गुणयुत श्रोतार ....' ६७ प्रियमेलक गुणगण तगु, कीरति कमला सिंधु, ते तोर्थेश्वर प्रणमिये, कलिकाले जगबन्धु .... ६८ श्री शांति तारण तरण, जेहनी भक्ति विशाल, ते तीर्थेश्वर प्रणमिये, दिन दिन मंगल माल .... ६१ वेत ध्वजा भल झलकती, भाखे भविने एम, ते तीर्थेश्वर प्रणमिये, भ्रमण करो छो केम ? .... ७० साधक सिद्ध दशा भणी, आराधे एक चित्त, ते तोथेश्वर प्रणमिये, साधन परम पवित्त .... ७१ संघपति थइ एहनी, जे करे भावे यात्र, ते तोर्थेश्वर प्रण मये, तस होय निर्मल गात्र .... ७२ Page #45 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ४१ ) शुध्धातम गुण रमणता, प्रगटे जेहने संग ते तीर्थेश्वर प्रणमिये, जेहनो जस अभंग .... ७३ रायणवृक्ष सोहमणू, जिहां जिनेश्वर पाय ते तीर्थेश्वर प्रणमिये, सेवे सुर नर - राय.....७४ पगला पूजी ऋषभना, उपशम जेहने चंग ते तीर्थेश्वर प्रणमिये, समता पावन अंग....७५ विद्याधरज मिले बहु विचरे गिरिवर शृंग , ते तोर्थेश्वर प्रणमिये, चढ़ते नव रस रंग.....७६ मालती मोगर केतकी परिमल सोहे भृंग ते तीर्थेश्वर प्रमणिये, पूजे भवि जिन अंग....७७ अजित जिनेश्वर जिहां रह्या, चोमासु गुण गेह ते तोर्थेश्वर प्रणमिये आणी अबिहड नह...७८ शांति जिनेश्वर सोलमा, सोल कषाय करी अंत ते तीर्थेश्वर प्रणमिये, चातुरमास रहंत....७९ नेमि विना जिनेवर सवे, आव्या छे जिण ठाम ते तीर्थेश्वर प्रणमिये, शुद्ध करे परिणाम....८० नमि नेमि जिन अंतरे, अजितशांतिस्तव कीध ते तीर्थेश्वर प्रणमिये, नंदिषेण प्रसिद्ध...८१ Page #46 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४२) गणधर मुनि उवज्झाय तिम, लाभ लह्या कोइ लाख . ते तीर्थेश्वर प्रणमिये, ज्ञान अमृतरस चाख....८२ नित्य घंटा टंकारवे, रणझणे झल्लरी नाद ते तीर्थेश्वर प्रणमिये, दुदुभि मादल वाद....८३ जेणे गिरि भरत नरेस रे, कोधो प्रथम उद्धार ते तीर्थेश्वर प्रणमिये, मणिमय मूरत सार...८४ चौमुख चउगति दुःख हरे, सोवनमय सुविहार ते तीर्थेश्वर प्रणमिये, अक्षय सुख दातार....८५ इण तीरथ महोटा कह्या, सोल उद्धार सफार ते तीर्थेश्वर प्रणमिये, लघु असंख्य विचार....८६ द्रव्य भाव वैरी तणो, जेहथी थाये अंत ते तीर्थेश्वर प्रणमिये; शत्रुजय समरंत ....८७ पुंडरीक गणधर हुआ प्रथम सिद्ध इणे ठाम ते तीर्थेश्वर प्रणमिये, पुंडरीकगिरि नाम....८८ कांकरे कांकरे इण गिरि, सिद्ध हुआ सुपवित्त ते तीर्थेश्वर प्रणमिये, सिद्धक्षेत्र समचित्त....८९ मल द्रव्य भाव विशेषथी, जेहथी जाये दूर ते तीर्थेश्वर प्रणमिये, विमलाचल सुख पूर....९० Page #47 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४३) women सुरवरा बहु जे गिरिवरे, निवसे निरमल ठाण ते तीर्थेश्वर प्रणमिये, सुरगिरि नाम प्रमाण....९१ परवत सहु माहे वडो, महागिरि तेणे कहंत ते तीर्थेश्वर प्रणमिये, दरशन लहे पुण्यवंत....९२ पुण्य अनर्गल जेहथी, थाये पाप विनाश । ते तीर्थेश्वर प्रणमिये, नाम भलु पुण्यराश....९३ लक्ष्मोदेवोए कर्यो, कुडे कमल निवास ते तीर्थेश्वर प्रणमिये, पद्मनाम निवास....९४ सवि गिरिमां सुरपति समो, पातक पंक विलात ते तीर्थेश्वर प्रणमिये, पर्वतइंद्र विख्यात ...९५ त्रिभवनमां तीरथ सवे, तेहमा मोटो एह ते तीर्थेश्वर प्रणमिये, महातीरथ जस रेह...९६ आदि अंत नहि जेहनो, कोइ काले न विलाय, ते तीर्थेश्वर प्रणमिये, शाश्वतगिरि कहेवाय....९७ भद्र भला जे गिरिवरे, आज्या होय अपार ते तोर्थेश्वर प्रणमिये, नाम सुभद्र संभार....९८ वोर्य वधे शुभ साधुने, पामी तीरथ भक्ति ते तीर्थेश्वर प्रणमिये, नामे जे दृढ़शक्ति....९९ Page #48 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ४४ ) शिवगति साधे जे गिरि, ते माटे अभिधान ते तीर्थेश्वर प्रणमिये, मुक्तिनिलय गुणखाण....१०० चंद सुरज समकित धरा, सेव करे शुभचित्त ते तीर्थेश्वर प्रणमिये, पुष्पदंत विदित....१०१ भिन्न रहे भव जल थकी, जे गिरि करे निवास ते तीर्थेश्वर प्रणमिये, महापद्म सुविलास....१०२ भुमि धरी जे गिरिवरे, उदधि न लोपे लीह ते तीर्थेश्वर प्रणमिये, पृथ्वोपीठ अतोह....१०३ मंगल सवि मलवताणु, पीठ एह अभिराम ते तीर्थेश्वर प्रणमिये, भद्रपीठ जस नाम....१४० पाताले जस मूल छे, रत्नमय मनोहार ते तीर्थेश्वर प्रणमिये, पातालमूल विचार.... १०५ कर्मक्षय होवे जिहां, होये मिद्ध सुख केल, ते तीर्थेश्वर प्रणमिये, अकर्मक मन मेल....१०६ कामित सवि पूरण होये, जेहनु दरिशन पाम ते तीर्थेश्वर प्रणमिये सर्व काम मन ठाम....१०८ इत्यादिक एकवीश भला, निरुपम-नाम उदार जे समर्या पातीक हरे, आतम शक्ति अनुसार....१०८ ppxxxcoo Page #49 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पू. मुनिश्री दीपरत्नसागरजी (M. Com. M. Ed.) द्वारा संपादित प्रकाशनो (१) श्रीनवकार महामंत्र नवलाख जाप नोंधपोथी (सर्व प्रथम वखत, प्रत्येक माला के लिए) अलग नोंधकी सुविधा)-१४ आवृति । (२) श्री चारित्र पद १ कोड जाप की नोंधपोथी (क्षायिक चारित्र प्राप्ति अर्थे)-३ आवृति (३) श्री बारव्रत पुस्तिका तथा अन्य नियमो सर्व प्रथमा डबल-कलर-विशिष्ट विभागीकरण तथा नियमों लेने की अत्यन्त सुविधायुक्त-३ आवति अभिनव जैन पंचांग-२०४२ सूर्योदय से पुरीमड्ढ़-कामलीका काल तथा शाम को दो घड़ी सहित का सर्व प्रथम प्रकाशन (५) अभिनव हेम लघुप्रक्रिया भाग १ सप्तांगविवरण (६) अभिनव हेम लघुप्रक्रिया भाग २ सप्तांगविवरण (७) अभिनव हेम लघप्रक्रिया भाग ३ सप्तांगविवरण (८) अभिनव हेम लघुप्रक्रिया भाग ४ सप्तांग विवरण (९) कृदन्तमाला (१२५ धातुका २३ प्रकार से कृदन्त) (१०) शत्रुजय भक्ति-२ आवति (११) श्री ज्ञानपद पूजा (१२) शजय भक्ति हिन्दी में-२ आवृत्ति . अभिनव श्रुत प्रकाशन Page #50 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शाश्वत तीर्थ सिद्धाचल यात्रा का एक मात्र साथी आप भी साथ रखोये इस किताब को एसिद्धाचल तीर्थ यात्रा के समय 4 कार्तिक पूर्णिमा के दिन श–जय तोर्थ पट के सामने पट जूहारने के लिए "हर पूर्णिमा के दिन श्री सिद्धाचलजी की भाव यात्रा करने हेतू "श्री सिद्धाचल तीर्थं आराधना करवाने के लिए 4 द्रव्य सहायक शा. इंदरमलजी वरदीचंदजी गुलाबचंदजी, पीन्डवाड़ा