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________________ (१५) श्री शत्रुजय तीर्थ का गुणभित २१ खमासमण.... सिद्धाचल समरू सदा, सोरठ देश मोझार, मनुष्य जन्म पामी करी, वंदु वार हजार । अंग वसन मन भुमिका, पूजोपगरणसार, न्याय द्रव्यविधि शुद्धता, शुद्धि सात प्रकार । कातिक सुदि पुनम दिने, दश कोटि परिवार, द्राविड ने वारिखिल्लजी, सिद्ध थया निरधार । तिण कारण कार्तिक दिने, संघ सयल परिवार, आदिजिन सन्मुख रही, खमासमण बहुवार । एकवीश नामे वर्णव्यो, तिहां पहेलु अभिधान, शत्रुजय शुकरायथी, जनक वचन बहुमान । सिद्धाचल समरु सदा, सोरठ देश मोझार, मनुष्य जन्म पामी करी, वंदु वार हजार । ....१ ( यह दुहा प्रत्येक दुहा के अंते बोलकर खमासमण देना ) समोसर्या सिद्धाचले, पुण्डरीक गणधार, लाख सवा महातम कह्यू, सुरनर सभा मोझार । चैत्रो पुनम ने दिने, करो अनशन एक मास, पांच कोडि मुनि साथ शु मुक्ति निलयमा वास । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003631
Book TitleShatrunjay Bhakti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAbhinav Shrut Prakashan
Publication Year
Total Pages50
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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