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________________ (१६) तिणे कारण पुण्डरीक गिरि, नाम थयु विख्यात, मन वच काये वंदीए, उठी नित्य प्रभात.... सिद्धा २ वीश कोडि शु पांडवा, मोक्ष गया इणे ठाम, एम अनन्त मुकते गया, सिद्धक्षेत्र तिणे नाम.... सिद्धा ३ अड़सठ तीरथ न्हावतां, अंगरंग घडी एक, तुबी जल स्नाने करी, जाग्यो चित्त विवेक । चन्द्रशेखर राजा प्रमुख, कर्म कठीन मलधाम, अचलपदे विमला थयां, तिणे विमलाचल नाम.... सिद्धा ४ पर्वतमां सुरगिरि वडो, जिन अभिषेक कराय, सिद्ध हुआ स्नातक पदे, सुरगिरि नाम धराय । भरतादिक चौद क्षेत्रमां, ए समो तीरथ न एक, तिणे सुरगिरि नामे नमु, जिहां सुरवास अनेक.... सिद्धा ५ एंशी योजन पृथुल छे, उंचपणे छब्बीश, महिमाए मोटो गिरि, महागिरि नाम नमीश.... सिद्धा ६ गणधर गुणवंता मुनि, विश्व माहे वंदनिक, जेहवो तेहवो संयमी, विमलाचल पूजनीक । विप्रलोक विषधर समा, दुःखोया भूतल मान, द्रव्यलींग कण क्षेत्र सम, मुनिवर छीप समान । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003631
Book TitleShatrunjay Bhakti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAbhinav Shrut Prakashan
Publication Year
Total Pages50
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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