SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 38
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( ३४ ) परमानन्द दशा लहे, जस ध्याने मुनिराय, ते तीर्थेश्वर प्रणमिये, पातिक दूर पलाय.... १०.... श्रद्धा भासन रमणता, रत्नत्रयीनों हेतु. ते तीर्थेश्वर प्रणमिये, भव मकराकर सेतु.... ११..... महापापी पण निस्तर्या, जेहनु ध्यान सुहाय, ते तीर्थेश्वर प्रणमिये, सुरनर जस गुण गाय.... १२..... पुंडरिक गणधर प्रमुख सिध्या साधु अनेक, ते तीर्थेश्वर प्रणमिये, आणि हृदय चन्द्रशेखर स्वसा पति, जेहने संगे ते तीर्थेश्वर प्रणमिये, पामिजे निज विवेक..... १३.... सिद्ध, रिद्ध.... १४..... जलचर खेचर तिरिय सवे पाम्या आतम भाव, ते तीर्थेश्वर प्रणमिये, भवजल तारण नात्र..... ५..... संघ यात्रा जेणे करी, कोधा जेणे ते तीर्थेश्वर प्रणमिये, छेदिजे गति उद्धार, चार....१६..... थाय, पुष्टि शुद्ध संवेग रस, जेहने ध्याने ते तीर्थेश्वर प्रणमिये, मिथ्यामति सवि जाय.... १७.... सुरतरु सुरमणि सुरगवी, सुरघट सम जस ध्याव, तै तीर्थेश्वर प्रणमिये, प्रगटे शुद्ध स्वभाव.... १८..... Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003631
Book TitleShatrunjay Bhakti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAbhinav Shrut Prakashan
Publication Year
Total Pages50
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy