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________________ ( ७ ) एम विमल गिरिवर शिखर मंडन, दुःख बिहंडण ध्याइए निज शुद्ध सत्ता साधनार्थ, परम ज्योति निपाइए.... ७ जीत मोह कोह विछोह निद्रा, परमपद स्थिति जयकरं, गिरिराज सेवा करण तत्पर, पद्मविजय सुहितकरं ....८ जंकिची -नमुत्थुणं - जावंति - खमासमण - जावंत नमोऽर्हत् । श्री आदिनाथजी का स्तवन शेत्रुजा गढ़ना वासी रे, मुजरो मानजो रे सेवकनी सुणी वातो रे, दिलमां धारजो रे में दीठो तुम देदार, प्रभु आज मने उपन्यो हरख अपार : साहिबानी सेवा रे, भवदुःख भांगशे रे...१ आंकड़ी एक अरज अमारी रे, दिलमां भारजो रे, चोरासी लाख फेरा रे दूर निवारजो रे । प्रभु मने दुर्गति पडतो राख, प्रभु मवे दरिशन वहेलु दाख... साहिबा २ दोलत सवाइ रे सोरठ देशनी रे बलिहारी जाउं रे, प्रभु तारा वेशनी रे, प्रभु तारू रुडु दीठु रूप, मोह्मा सुरनर वृन्दने भूप... साहिबा ३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003631
Book TitleShatrunjay Bhakti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAbhinav Shrut Prakashan
Publication Year
Total Pages50
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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