SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 28
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( २४ ) एक वार जो नजरे निरखो, तो सेवक थाये तुम सरीखो, जो सेवक तुम सरोखो थासे, तो गुण तुमारा गाशे....मुणो....९ भवोभव तुम चरणोनी सेवा, तो मांगु छुदेवाधिदेवा. सामुजुवोने सेवक जाणी, एवी उदय रत्ननी वाणो.. सुणो....१० पुंडरीक स्वामी का स्तवन एक दिन पुंडरिक गणधरू रे लाल पुछे श्री आदिजिणंद सुखकारी रे, कहीये ते भवजल उतरी रे लाल, पामीश परमानन्द भववारी रे....एक.... १ कहे जिन इण गिरि पामशो रे लाल, नाण अने निरवाण जयकारी रे, तीरथ महिमा वाघशे रे लाल, अधिक अधिक मंडाण निरधारी रे....एक.... २ इम निसुणी तिहां आवीया रे लाल, घाती करम कर्या दूर तम वारी रे, पंच क्रोड मुनि परिवाँ रे लाल, हुआ सिद्धि हजुर भववारी रे....एक.... ३ चैत्री पुनम दिने कीजीए रे लाल, पूजा विविध प्रकार दिलधारी रे, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003631
Book TitleShatrunjay Bhakti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAbhinav Shrut Prakashan
Publication Year
Total Pages50
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy