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भव जलनिधि पोत: सर्वं संपत्ति हेतु: स भवतु सततं वः श्रेयसे शांतिनाथ:
तलेटीनुं चैत्यवंदन श्री सिद्धाचल तीर्थनायक, विश्वतारक जाणीये, अकलंक शक्ति सुरगिरि, विश्वानद वखाणोये. मेरू भहीधर हस्तगिरिवर चर्मगिरिधर चिन्हए. श्वास मां सो वार वंदु, नमो गिरि गुणवंत ए....१ हसितवदने हेमगिरिने पूजोए पावन थई, पुडरिक पर्वतराज शतकुट, नमन अंग आवे नही, प्रोति मंडण कर्म छंडण शाश्वतो सुरकंद ए,श्वास २ आनंद धर पुण्यकंद सुन्दर, मुक्तिराजे मन वस्यो, विजयभद्र सुभद्र नामे, अचल देखत दिल वस्यो, पाताल-मुलने ढंक पर्वत, पुष्पदंत जयवंत हे श्वास...३ बाहुबली मरूदेवी भगीरथ सिद्धक्षेत्र कंचन गिरि लोहिताक्ष कुलिनि वासमानव रैवताचल महागिरि, शेत्रुजा मणि पून्यराशि कुवर केतु कहत हे श्वास ....४ गुणकंद कामुक दृढ़शक्ति, सहजानंद सेवा करे, जय जगत तारण ज्योति रूप माल्यवंतने मनोहरे, इत्यादिक बहु कीति माणक,करत सुर अनंत हे,श्वास....२
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