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________________ (२२) पडिककमणां दोय विधिशु करीए, पाप पडल विखरीए विमलगिरि यात्रा....८.... कलिकाले ए तिरथ मोटु, प्रवहण जेम भर दरिए विमलगिरि यात्रा....९.... उत्तम ए गिरिवर सेवंता, पद्म कहे भव तरीए विमलगिरि यात्रा....१०.... श्री शांतिनाथ प्रभ का स्तवन शांति जिनेश्वर साहिबा रे, शांति तणा दातार अंतरजामी छो माहरां रे, आतमनां आधार....शाति....१ चित्त चाहे प्रभु चाकरी रे, मन चाहे मलवाने काज नयन चाहे प्रभु निरखवां रे, द्यो दारशन महाराज.शांति.२ पलक न विसरू मनथकी रे, जेम मोरा मन मेह, एक पखो केम राखोये रे, राजकपटनो नेह....शांति....३ नेह नजर निहालतां रे, वाधे बमणो रे वान अखुट खजानो प्रभु ताहरो रे, दीजिए वांछित दान........४ आशा करे जे कोई आपनी रे, नवि करीए निराश सेवक जाणी ताहरो रे, दोजिये तास दिलास....शांति....५ दायकने देतां थकां रे, क्षण नवि लागे रे वार काज सरे निज दासनां रे, ए मोटो उपकार....शांति....६ एवं जाणीने जगघणी रे, दीलमांही धरजो रे प्यार रूप विजय कविरायनो रे, मोहन जय जयकार....शांति,..७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003631
Book TitleShatrunjay Bhakti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAbhinav Shrut Prakashan
Publication Year
Total Pages50
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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