Book Title: Shatrunjay Bhakti
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Abhinav Shrut Prakashan

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Page 35
________________ (३१) - शत्रंजय तोर्थयात्रा भावना-स्तवन कोई सिद्धगिरि राज भेटावे रे, वंदावे रे, बतलावे रे, गवरावे रे, पूजावे रे, नागर सज्जना रे, दैत्य समानने अरियसमान रे,जे तारे द्वार आवे रे, नागर....१ अतिही उमाह्योने बहु दीन वहीयो रे, मानवना वृन्द आवे रे....नागर....२ धवल देवलोयाने सुरपति मलोया रे, चारोही पाग चढ़ावे रे....नागर....३ नाटक गीत ने तुर वागे रे, कोई सरगम नाद सुणावे रे....नागर....४ श्री जिन नोरखीने हरखित होवे रे, तृषित चातक जल पावे रे....नागर....५ धन धन ते नरपतिने गहपति, के इ संघपति तिलक धरावे रे....नागर....६ सकल तीरथमांहि समरथ ए गिरि; . ___ केइ आगमपाठ बतावे रे....नागर....७ बेर बेठा पण ए गिरि ध्यावो रे, ज्ञानविमल गुण गावे रे....नागर...८ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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