Book Title: Shatrunjay Bhakti
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Abhinav Shrut Prakashan

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Page 36
________________ ( ३२) शंत्रुजय तीर्थयात्रा भावना स्तवन प्रभुजी जाबु पालीताणा शहेर के मन हरखे घणु रे लो, प्रभुजी संघ भलेरा आवे के ए गिरि भेटवा रे लो....प्र....१ प्रभुजो आव्यु पालीताणा शहेर, तलाटी शोभती रे लो, प्रभुजी डंगरीये चढंत के हैये हेज घणु रे लो....प्र....२ प्रभुजी आन्यो हिंगलाजनो हडो के के.डे हाथ दइ चढ़ो रे लो, प्रभुजी आव्यो छालो कुड के, शीतल छांयडी रे लो....प्र....३ . प्रभुजी आबो रामज पोल के सामे मोतीवसी रे लो मोतीवसी दिसे झाकझमाल के जोवानो जुक्ति भली रे लो..४ प्रभुजी आवी वाघणपोल के डाबा चकैसरी रे लो, चककेसरी जिनशासन रखवाल, के संघमां सांनिध्य करे रे लो.५ प्रभुजी आवी हाथणपोल के सामा जगघणी रे लो, प्रभुजी नुमुखडु पुनम केरो चंद के मोह्या सुरपति रे लो...६ प्रभुजी मुल गभारे आवी के आदीश्वर भेटीया रे लो, आदीसर भेटे भवदुःख जाय के, शिवसुख पामीये रे लो....७ प्रभुजी नहीं रह तुमथी दूर के, गिरिपंथे वस्यो रे लो एवो वीरविजयनी वाणी के शिवसुख आपजो रे लो....प्र...८ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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