Book Title: Shatrunjay Bhakti
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Abhinav Shrut Prakashan

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Page 34
________________ (३०) - - - इस गिरिका एक एक कंकर, हीरे से मुल्य है बढ़कर कोई चतुर जहोरी अगर मीले तो, सच्चा मोल करालु शिवसुख पा लुरे....कर....३ . शत्रुजय शत्रु विनाशे, आतमाकी ज्योति प्रकाशे, मैं भावभक्ति के नीर में अपना जोवन वस्त्र रंगालु शिवसुख पा लुरे....कर....४ तपको दिवार बना लुसमता का द्वार चिनालु, जहां रागद्वेष नहीं घुसने पाये, ऐसा महेल बनालु शिवसुख पा लुरे कर....५ कातिक पुनम दिन आवे, मन यात्रा को ललचावे, मैं रामधर्म का नीर सिंचकर, अपना बाग खिलालु शिवसुख पा लुरे....कर....६ घेटी पगला का स्तवन ऋषभ जिणंदा कृपा करीने, घेटी दरिशन दीजो आज मोहे घेटी दरिशन दीजो घेटी पाय उतरता मारा पाप मेवासी खीजो....आज....१ अगुरू धूप करी चंदन पूजी, अमृतरस में पीजो....आज....२ आरती दीप करंता में तो, पुन्य भंडार भरीजो....आज....३ ता ता थे थे नाच करंता मैं ने भावस्तव भलो कीजो..आज,.४ आदि प्रभुनुध्यान धरंता, ज्ञान विमलने लीजो....आज....५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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