Book Title: Shatrunjay Bhakti
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Abhinav Shrut Prakashan
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श्री सिद्धगिरिजी के १०८ खमासमण
श्री आदिश्वर अजर अमर, अव्याबाध भहोनिश, परमातम परमेसरु, प्रणमु परम मुनीश.... १.... जयजय जगपति ज्ञान भाण, भासित लोका लोक, शुद्ध स्वरुप समाधिमय, नमित सुरासुर थोक.... २.... श्री सिद्धाचल मंडणो, नाभि नरेसर नन्द, मिथ्यामति मत भंजणो, भावि कुमुदाकर-चन्द.... ३.... पूर्व नवाणु जस सिरे, समवसर्या जगनाथ, ते सिद्धाचल प्रण मिये, भकते जोडो हाथ.... ४.... अनन्त जीव इण गिरिवरे, पाम्पा भवनो पार, ते सिद्धाचल प्रणमिये, लहिये मंगल माल.... ५.... जस सिर मुकुट मनोहरू, मरूदेवीनो नन्द, ते सिद्धाचल प्रणमिये, रुद्धि सदा सुखवृन्द.... ६.... महिमा जेहनो दाखवा, सुगुरु पण मतिमंद, ते तीर्थेश्वर प्रणमिये, प्रगटे सहजानंद.... ७.... सत्ता धर्म समारवा, कारण जेह पडूर, ते तीर्थेश्वर प्रणमिये, नामे अघ सवि दूर.... ८.... कर्मकाट सवि टालवा, जेहनु ध्यान हुताश,
थेश्वर प्रणमिये, पामीजे सुखवास.... ९....
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