Book Title: Shatrunjay Bhakti
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Abhinav Shrut Prakashan

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Page 31
________________ ( २७ ) देवतणा वासाय छे सुणसुदरी तीरथ मे अनुकुल रे गुणमंजरी.... ५.... तीरथ ध्यान धरो मुदा सुणसु दरो सेवो एहनी छाय रे गुणमंजरी ज्ञान विमल गुण भालीयो सुणसुंदरी शत्रु जय महात्मय माय रे गुणमंजरी .... ६.... रायण पगला का स्तवन मेरे तो जाना शीतल रायण छाय ..... मरूदेवीनंदन अर्चित चंदन, रंजीत ऋषभना पाय.... मेरे...... नीलवरण दल निरमल माला, शिववधू खडी रही आय. मेरे.... २ क्यारी कपूर सुधारस सिंची, मानु हामगीरि राय.... मेरे ....३ सुरतरू सुरसम भोग को दाता, यह निजगुण समुदाय. . मेरे .... ४ आतम अनुभव रस इहां प्रगटी, कांति सुरनदी काय.... मेरे.....५ आदिजिन स्तवन सिद्धगिरि मंडन पाय प्रणमीजे, रीसहेसर जिनराय नाभिभूप मरूदेवा नंदन, जगत जंतु सुखदाय स्वामी तुम दरिशन सुखकार तुम दरिशनथी समकित प्रगटे, निजगुण ऋद्धि उदार रे.... Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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