Book Title: Shatrunjay Bhakti
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Abhinav Shrut Prakashan

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Page 27
________________ ( २३ ) श्री शांतिनाथ प्रभु का स्तवन सुणी शांतिजिणंद सोभागी हुं तो धयो छु तुम गुणरागी तुमे निरागी भगवंत, जोतां किम मलशे तंत.... सुणो.... १ हुत क्रोध कषायनो भरीयो, तुरंतो उपसम रसनो दरियो हु तो अज्ञाने आवरीयो, तुरंतो केवल कमला वरीयो. सुणो....२ हु तो विषयारसनो आशी, तें तो विषया कीधी निराशी हु तो कर्मना भारे भरियो,तुं तो प्रभु पार उतरीयो. सुणो....३ हु तो मोहतणे वश पडीयो, तें तो सबलां मोहने हणीयो हु तो भव समुद्रमां खुच्यो, तुरंतो शिव मंदिरमां पहुंच्यो....४ मारो जन्म मरणनो जोरो, तें तो तोड्यो तेहनो दोरो मारो पास न मेले राग, तमे प्रभुजी थया वीतराग... सुनो.... ५. मने मायाए मुक्यो पासी, तुतो निरबंधन अविनाशी हु तो समकित थी अधुरो, तुरंतो सकल पदारथे पुरो सुणो.....६ म्हारे तो प्रभुजी तु एक, त्हारे मुज सरीखा अनेक हु तो मनथीन मुकुमान, तुरंतो मानरहित भगवान. सुणो....७ मारु कीधु कशु नवि थाय, तुरंतो रंकमे करे छे राय एक करो मुज महेरबानो, म्हारो मुजरो लेजो मानी. सुणो.....८ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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