Book Title: Shatrunjay Bhakti
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Abhinav Shrut Prakashan

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Page 25
________________ (२१) - - नाभि नरेसर नंदन आशा पूरजो रहे जो हृदयमां सदा करीने वासजो कांति विजयने आतम पद अभिराम छे, सदा सोहागण थाये, मुक्ति विलासजो....गिरि....८.... तलाटीए बोलने का स्तवन यात्रा नवाणु करीए विमलगिरि, यात्रा नवाणु करीए पूर्व नवाणु वार शेत्रुजा गिरि, ऋषभ जिणंद समोसरोए विमलगिरि यात्रा....१.... कोडी सहस भव पातक त्रुटे, शेत्रुजा सामो डग भरिए विमलगिरि यात्रा....२.... सात छठ्ठ दोय अठ्ठम तपस्या, करी चड़ीए गिरिवरीए विमलगिरि यात्रा....३.... . पुडरिक पद जपीए मन हरखे, अध्यवसाय शुभ घरीए विमलगिरि यात्रा....४.... पापी अभवि नजरे न देखे, हिंसक पण उद्धरीए विमलगिरि यात्रा....५.... भूमि संथारोने नारी तणो संग, दूर थकी परिहरीए विमलगिरि यात्रा...६.... सचित्त परिहारीने एकल आहारी, गुरु साथे पद चरीए विमलगिरि यात्रा....७.... Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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