Book Title: Shatrunjay Bhakti
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Abhinav Shrut Prakashan

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Page 24
________________ (२०) जन्म लोधो तें दुःखीयाना दुःख टालवा, ते टालीने सुखीया कीधा नाथजो तुम बालकनी पेरे, हु पण बालुडो नमो विनमी ज्यु, धरजो मारो हाथजो....गिरि....३.... जिमतिम करी पण आ अवसर आवी मल्यो स्वामी सेवक सामा सामी थाय जो वखत जवानो भय छे मुजने आकरो, दर्शन दियो तो लाखेणा कहेवाय जो....गिरि....४ पांचमे आरे प्रभजो मलवा दोह्यला तो पण मलीयां भाग्य तणो नहि पारजो उवेखो नहि थोड़ा माटे साहिबा एक अरजने मानी लेजो हजार जो....गिरि......... सुरतरू नाम धरावे, पण ते शु करू साचो सुरतरू तु छे दीन दयालजो मन गमतुं दई दानने भवभय वारजो साचा थाशो षट्काय प्रति पालजो....गिरि....६.... करगरू तो पण करूणा जो नहि लावशो लंछन लागे संघपति नाम धरावी जो केडे वलग्यां ते सहुने सरखा कर्या, धीरज आपो, अमने भगत ठरावीने....गिरि....७.... Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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