Book Title: Shatrunjay Bhakti
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Abhinav Shrut Prakashan

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Page 17
________________ (१३) जयवीयराय, अरिहंत चेइयाणं, अन्नत्थ-१ नवकार काउस्मग्ग पुंडरीक स्वामी को थोय भरहेसर भदंत, ऋषभजिनेसर शीस पुंडरीक गणाधिप, प्रणमनामी सोस चैत्री पुनमदिन विमलाचल गिरिशृग, पंचमगति पाम्या, पंचकोडि मुनिसंग....१.... घेटी पगला सामने बोलने को स्तुति श्री सिद्धाचल निरखी हरखे, आंखडी एनी पावन थाय पगले पगले आगल वधतां, काया एनी निरमल थाय घेटी जइने पगला पूजे, आनन्द हैये अति उभराय सुषम दुषम आरे रहेला, आदि प्रभुनु समरण थाय....१ आतपरनी तलेटीथी, जे भवि यात्रा करे घेटी पगले शीश नमावी, सिद्धगिरि पर फरे नवाणु नी यात्रा करता, नव वखत निश्चे करे घेटी पगले भाव भक्ति, पुण्य भाथु ते भरे....२ आदि प्रभनु दर्शन करीने घेटी पाये जे नर जाय तन मन केरा जे संतापो, प्रभु पगले सवि दूर जाय एवा पगले आवी प्रभुजी, अरज करू छु हे जिनराय आदीश्वर तुज ध्यान धरता, जन्ममरणना फेरा जाय...३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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