Book Title: Shatrunjay Bhakti
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Abhinav Shrut Prakashan
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(१४)
घेटी पगला का चेत्यवंदन सर्वतीर्थ शिरोमणी, शत्रुजय सुखकार घेटो पगलां पूजतां, सफल थाय अवतार....१ पूर्व नवाणु पधारीया, जिहां श्री अरिहंत ते पगलां ने वंदिए, आणि मन अतिखंत...२ चोविहारो छ8 करी, घेटी पगले जाय
धर्मरत्न पसायथी, मन वांलित फल थाय जंक्चिी नमुत्युणं जावंति-खमासमण जावंत नमोऽहत्
घेटी पगला का स्तवन मेरे तो प्रभजी ले चल घेटी पाय, आदीश्वरना दशन करीने, वंदु घेटी पाय....मेरे....१.... लोली हरियाली वचमां देरी, सोहे ऋषभना पाय,..मेरे....२
रागद्वषनी ग्रंथी भेदे, पूजे आदिजिन पाय....मेरे....३.... प्रथम प्रभुना ध्यान प्रभावे, यात्रा सुखभर थाय....मेरे....४.... धर्मरत्न जिन गिरि गुण गाता, भवनी भावठ जाय मेरे....५.... जयवोयराय, अरिहंत चेइयाणं अन्नत्थ-१ नवकार, काउस्सग्ग
घेटी पगले थोय आगे पूरव वार नवाण, आदि जिनेसर आयाजी शत्रुजय लाभ अनंतो जाणी, वॅदु तेहना पायाजी जगबंधव जगतारण ए गिरि, वीठा दर्गति वारेजी यात्रा करंता छ'री पाले, काज पोताना सारेजो....१
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