Book Title: Shatrunjay Bhakti
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Abhinav Shrut Prakashan
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( ११)
Panasana:
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रायण पगले थोय श्री शत्रुजय मंडन आदि देव
हु अहोनिश सारू तास सेव रायण तले पगला प्रभुजी तणां ।
सकल फुले पूजीश सोहामणा....१.... पुंडरिकस्वामी की स्तुति भावोल्लास भरीने मुज मन मां, आवी उभो तुज कने उछले भावतरंग रंग हृदये मूर्ति वसो मुज ममे पाम्या भाविक भक्त भाव घरीने, विमुक्ति जे नामथो एवा श्री पुंडरिक स्वामी चरणे, वंदु सदा भावथी....१ पंडरोक तारू दर्शन करतां हैयुमारू अति हरखाय पुंडरीक तारू मुखडुजोतां, आनंद हैये अति उभराय पुडरिक तारू नाम जपंता, पापकर्म सवि दूर पलाय पुडरिक तारे चरणे वंदू, शाश्वत सुखने जेम वराय....२ दर्शन प्रभु करवा भणी, तुज पासे आवीने रह्यो पुडरीक एहवा नामथो, शास्त्रो तणे पाने कह्यो पुंडरीक वत् पुंडरीक वन्या कोडी पांचने साथे, लह्या पुंडरीक नमु पुडरिक जपु ए ओरता मनमा रह्या....३
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