Book Title: Shatrunjay Bhakti
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Abhinav Shrut Prakashan

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Page 14
________________ (१०) -- जोनजी नीरखी हरख जेह के, भांगे भूखडा रे लोल जीनजी निरमल शीतल छांयके, सुगंधी विस्त रे रे लोल....जी.२ जीनजी अधिष्ठायक देव के, सदा हित साधता रे लोल जीनजी हलुकर्मी हरखाय के, अमरफल बांधता रे लोल....जो३ जीनजी मधुरी मोहन बेल के, कलियुगमा खडी रे लोल जोनजी सेवे संत महंत के त्रिभुवनमां वडो रे लोल""जी.४ जोनजी पुण्यवंत जे मानवी, ते आवी चढ़े रे लोल जीनजी शुभगति बांवे आयुष के नरके नवि पडे रे लोल....जी.५ जोनजी प्रभु पगला सुपसाय के सुपूजोत सदा रे लोल जीनजी महोटानो अनुयोग के, आपे संपदा रे लोल....जी.६ जोनजी सूर्यकान्त मणि जेमके सूर्यप्रभा घरे रे लोल जोनजी पामी स्वामि संग के रंगप्रभा घरे रे लोल..."जी७ जीनजो सफल क्रियाफलदायके मोक्षफल आपजो रे लोल जीनजी सफल क्रियाविधिछाप के निरमल छापजोरे लोल.,.जी;८ जीनजी धर्मरत्न पद योग क अमर थाउं सदा रे लोल जीनजी आशीर्वाद आ वाद के देजो सर्वदा रे लोल....जो.९ जयवीय राय-3.रिहंत चेइयाणं अन्नत्थ १ नवकार- काउस्सग्ग Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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