Book Title: Shatrunjay Bhakti
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Abhinav Shrut Prakashan

View full book text
Previous | Next

Page 12
________________ (८) तीरथ को रे, शेत्रुजा सारिखुरे, वचन पेखीने कीधु में पारखु रे, ऋषभ ने जोई जोई हरखे जेह, त्रिभुवन लीला पामे तेह....साहिबा....४ भवोभव मांगु रे प्रभु ताहरी सेवना रे, ___ भावठ न भांगे रे जगमा जे विना रे, प्रभु मारा पुरजो मनना कीड, एम कहे उदय रतन कर जोड . साहिबा ....५ जयवीय राय, अरिहंत चेइयाणं, अन्नत्थ,१ नवकार काउस्सग करके थोय कहना श्री आदिनाथजी की थोय शत्रुजय मंडन रिसह जिनेसर देव, सुरनर विद्याधर जेहनो सारे सेव । सिद्धाचल शिखरे सोहाकर शृगार, श्री नाभिन रेसर मरूदेवीनो मल्हार । रायण पगला सामने की स्तुति आनन्द आजे उपन्यो, पगला जोया जे आपना, अंतरतलेथी भागता जे, सुभटो रहया पापना । जे काल में विषे प्रभुजी, आप आवी समोसर्या, धन जीव ते धन जीव ते, दर्शन लही भवजलतर्या....१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50