Book Title: Shatrunjay Bhakti
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Abhinav Shrut Prakashan

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Page 10
________________ पूर्णानन्दमयं महोदयमयं, केवल्यचिद ङमयं रूपातीत मयं स्वरूपरमणं स्वाभाविकी श्रीमयं ज्ञानोद्योतमयं कृपारसमयं, स्याद्वाद विद्यालयं श्री सिद्धाचल तीर्थराजमनीशं वन्देऽहमादीश्वरं....२ आदिमं पृथिवीनाथ मादिमं निष्परिग्रहम आदिमं तीर्थनाथं च ऋषभ स्वामिनं स्तुम.....३ श्री आदिनाथजी का चैत्यवन्दन विमल केवल ज्ञान कमला, कलित त्रिभवन हितकरं सुरराज संस्तुत: चरणपंकज, नमो आदि जिनेश्वरं...! विमल गिरिवर शृगमंडन, प्रवर गुणगण भूधरं मुर असुर किन्नर कोडि सेवित, नमो आ द जिनेश्वरं....२ करती नाटक किन्नरी मण, गाय जिन गुण मनहरं निर्जरावली नमे अहोनिश, नमो आदि जिनेश्वरं....३ पुडरिक गणपति सिद्धि साधित, कोडि पण मुनि मनहरं श्रो विमल गिरिवर शृगसिद्धा, नमो आदि जिनेश्वरं .. ४ निज साध्य साधक सुर मुनिवर. कोडीनंत ए गिरिवरं मुक्तिः रमणी वर्या रंगे, नमो आदि जिनेश्वरं.....५ पाताल नर सुरलोक मांही, विमल गिरिवर तो परं नहीं अधिक तीरथ तीर्थपति कहे, नमो आदि जिनेश्वरं...६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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