Book Title: Shatrunjay Bhakti Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar Publisher: Abhinav Shrut Prakashan View full book textPage 9
________________ दुःख भंजन छे बिरुद तमार, अमने आशा तुमारी, तुमे निरागी थइने छूटयो, शी गति होशे हमारो .... मारो २ कहेशे लोक न ताणी कहवु, एवडु स्वामी आगे, पण बालक जो बोली न जाणे, तो किम व्हाला लागे....मारो ३ माहरे तो तु समरथ साहिब, तो किम ओछु मार्नु, चिन्तामणी जेण गांठे बांध्यु. तेहने काम किश्यानु...मारो ५ अध्यातम रवि उग्यो मुजघट, मोह तिमिर हयुं जुगते, विमल विजय वाचकनो सेवक, राम कहे शुभ भगते....मारो ५ जय वीयराय, अरिहंत चेइयाण-अन्नत्थ-१ नवकार काउस्सग्ग श्री शांतिनाथजी की स्तुति तज लविंग जायफल एलची, नागर वेलिशु रंगी अति मची। मोरा मन थकी अति वालहो, . शांति जिनेस र मूर्ति में लही । श्री आदिनाथजी सामने बोलने की स्तुति करुणासिन्धु त्रिभुवन नायक, तुमुज चितमां नित्य रमे चाकरी चाहु अहोनिश ताहरी, भावथी मन मारू विरमे । श्री सिद्धाचल मंडन साहिब, तुम चरणे सुरनर प्रणमे सम्यक दर्शन अमने आपो, विश्वना तारणहार तमे....१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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