Book Title: Shatrunjay Bhakti
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Abhinav Shrut Prakashan

View full book text
Previous | Next

Page 4
________________ त्रण प्रदक्षिणाना दहा काल अनादि अनंतथी, भवभ्रमणानो नहीं पार, ते भ्रमणा निवारवा, प्रदक्षिणा दउं त्रण सार भमतीमां भमता थका, भव भावठ दूर पलाय, सम्यग्दर्शन पामवा, प्रथम प्रदक्षिणा देवाय....१.... जन्म मरणादि सवि भय टले सीझे जो दरिशन काज, सम्यग् ज्ञानने पामवा, बीजी प्रदक्षिणा जिनराज, ज्ञान वडु संसारमा, ज्ञान परम सुख हेत ज्ञान विना में नवि ला, परम तत्त्व संकेत....२.... चय ते संचय कर्मनो, रिक्त करे वली जेह, चारित्र नाम नियुकते कह्य वंदो ते गुण गेह शाश्वत सुखने पामवा, ते चारित्र निरधार, त्रोजी प्रदक्षिणा ते कारणे, भवदुःख भंजनहार....३.... Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 2 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 ... 50