Book Title: Shabdaratnamahodadhi Part 2
Author(s): Muktivijay, Ambalal P Shah
Publisher: Vijaynitisurishwarji Jain Pustakalaya Trust Ahmedabad

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Page 779
________________ १५८६ शब्दरत्नमहोदधिः। [बिसल-बुद्धद्रव्य बिसल न. (बिस्+कलच्) ३ , २, दूं५५. | बुक् (भ्वा. प. अ. सेट-बुक्कति/चु. उभ. अ. सेटबिसवत् त्रि. (बिस्+चतुरझं मतुप् मस्य वः) भजन बुक्कयति- ते) मस, j. _isualj, Yuसवाणु.. बुक् अव्य. (बुक्क्+क्विप् पृपो० उपधालोपः) अनु७२७८ बिसवर्मन् (पुं. न.) नेत्रनो में रो. ___ भूख श६. बिसिनी स्त्री. (बिस्+पुष्करा. इनि+ङीप्) मलिनी, | बुक त्रि. (बुक्क्+अच् पृषो. उपधालोपः) मसना२. કમળનો સમૂહ, કમળવાળો દેશ. बुकिन् त्रि. (बुक+चतुरर्थ्यां इनि) मसनारनी. समापनो. बिसिल त्रि. (बिस्+ चतुरां काश्या. इल) Ful, प्रदेश वगैरे. કમળના દાંડલાની સમીપ વગેરે. बुक्क त्रि. (बुक्कयति बुक्बुक् इति अव्यक्तशब्द करोति, बीज न. (बि+जन्+ड, उपसर्गस्य दीर्घः, बवयोरभेदः) बुक्क्+अच्) मसनार, स.व्यात. श६ ४२८२. जीनो , मना४- अरण्यबीजाञ्जलि (पुं. बुक्कयति, बुक्क्+अच्) ५४२, द्रूतरी, समयदानलालिताः-कुमा० ५।१५। -बीजाञ्जलिः पतति जत. (न.) हय-बुक्काघातैर्युवतिनिकटे प्रौढवाक्येन कीटमुखावलीढः- मृच्छ० १।९। ®auj, तत्व, भूज राधा-उद्भटः । बोडी, हयनो मांसपिंड. प्रवाह, ७८२९. -बीज २०६पूर्व- बीज प्रकृति, बुक्कन् पुं. (बुक्क्+कनिन्) तरी, ५.४२, समय. बीजगणित, बीजमन्त्र को३. ___ (पुं. बुक्+शत) हृदय, हिस.. बीजकर्तृ (पुं.) शिव. बुक्कन न. (बुक्क्+भावे ल्युट) मसj, अस्पष्ट कोसj. बीजकोश-ष (पुं.) उभजन 40४ पात्र. बुक्कस पुं. (पुक्कस+पृषोद.) यं . बीजगणित न. जीतन, विशान. बुक्कसी स्त्री. (बुक्कस+स्त्रियां ङीष्) यं. .. बीजदर्शक (पुं.) रंगनो व्यवस्था५४ वगैरे. बुक्का, बुक्की स्त्री. (बुक्क् + अच्+टाप्/बुक्क्+अच्+गौरा. बीजन्याय (पुं.) ४ अने. सं.२नी न्याय. ङीष्) ६६५, BM, All. बीजाकृ० ४ वाव -व्योमनि बीजाकुरुते-भामि० बुक्काग्रमांस न. (बुक्कस्य अग्रमांसम्) हृयम २३८. માંસપિંડાકાર અઝમાંસ. १९८। . ४ शत बुक्कार पुं. (बुक्कं भषणमृच्छति, ऋ+अण्) सिंडनी. बीजाक्षर (न.) मंत्रनो प्रथमाक्ष२. ईना. बीजाकुर (पुं.) जीना मं.पुरी. बुट (चु. उभ. सेट-बोटयति-ते) (भ्वा. पर. स. सेटबीजाध्यक्ष (पुं.) शिव. बीजाश्व (पुं.) Aia, घोट. बोटति- ते) डिंसा ४२वी, भारी नing. बीजपूर, बीजपूरक (पुं.) जी, पी. बुड् (त्यागे संवरणे तु. कुटा. प. स. सेट-बुडति) बीजोत्कृष्ट (न.) सुं४२ ४. त्या ४२वी, ढisg. बीभत्स त्रि. (बध-निन्दायां+स्वार्थे सन्+घञ् वा बीभत्सा बुडिल पुं. (तुदा. बुड्+इलच्) तनामनी मे. २0%0. घृणास्त्यत्र, अच्) मेहवाना वाधवानी ६२७, पापी, बुद् (भ्वा. उभ. स. सेट-बोदति-ते) तवीथी .j, निध, घृeu%8- हन्त ! बीभत्समेवाग्रे वर्तते-मा० ५। આલોચન કરવું, પ્રત્યક્ષ જોવું, ઓળખવું, સમજી -कृतं बीभत्समयशस्यं च कर्म तदा नाशंसे बिजयाय से. सञ्जय। -महा० १।१।२१०। विकृत मांस. वगैरे,घि २ बुद्ध पुं. (बुध+क्त) भगवाननी में अवतार- निन्दसि पात्र. (पुं. (बीभत्स्यतेऽनेन बध+ सन्+ करणे घञ्) यज्ञविधेरहह ! श्रुतिजातं सदयहृदय ! दर्शितपशुधातं નાટ્યશાસ્ત્ર પ્રસિદ્ધ જુગુપ્સા-સ્થાયીભાવ રસ, તે રસનો केशव ! धृतबुद्धशरीर ! जय जगदीश हरे ! विषय -'जुगुप्सा स्थायिभावस्तु बीभत्सः कथ्यते रसः' -गीत० १। पंरत विद्वान. (त्रि.) बोध पामेल, गेल, -सा० द० ३।२६३ । अर्जुन, सा६ वृक्ष. शनि., प्राशमान. बीभत्सु (बध्-निन्दने+स्वार्थे सन्-उ) अर्जुन- न कुर्यां | बुद्धगया (स्रो.) 81.52 देशमा आवेत सुद्धगया तीथ. कर्म बीभत्सं युध्यमानः कथञ्चन । तेन देवमनुष्येषु बुद्धद्रव्य न. (बुद्धं स्तूपाकारतो ज्ञातं द्रव्यम्) स्तूपबीभत्सुरिति विश्रुतः ।। साहार्नु ॐ3. गत ३५ २८ द्रव्य. For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org Jain Education International

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