________________
आगम
(१३)
[भाग-१५] “राजप्रश्नीय” – उपांग सूत्र-२ (मूलं+वृत्ति:)
--------------- मूलं [१५] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..आगमसूत्र- [१३] उपांगसूत्र- [२] "राजप्रश्नीय" मूलं एवं मलयगिरि-प्रणीता वृत्ति:
दिव्यवान
श्रीराजपनीका मलयगिरीया दृतिः
कारणं
प्रत
मु०१४
सूत्रांक
[१५]]
से जहानामए भिंग इ वा भिंगपने इवा सुएइ वा सुयपिच्छे इवा चासे इ वा चासपिच्छे इवा णीली इ वा णीलीभेदे इ वा पीलीगुलिया इ वा सामा इ वा उच्चन्ते इ वा वणराती इ वा हलधरवसणे इ वा मोरग्गीवा इ वा अयसिकुसुमे इ वा बाणकुसुमे इ वा अंजणकेसियाकुसुमे इ वा नीलुप्पले इ वा णीलासोगे इ वा णीलबंधुजीवे इ वा णीलकणवीरे इ वा, भवेयारुवे सिया ?, णो इणटे समतु, ते णं णीला मणी एतो इद्रुतराए चेव जाव वण्णेणं पण्णता । तत्थ णं जे ते लोहियगा मणी तेसिणं मणीणं इमेयारूचे वण्णावासे पण्णने,से जहाणामए उरभरुहिर इ वा ससरुहिर इ वा नररुहिरे इ वा वराहरुहिरे दवा (महिमरुहिरे इवा) बालिंदगोवे इ वा बालदिवाकरे इ वा संझम्भरागेइ वा गुंजद्धरागे इ वा जामुअणकुसुम इ वा किंमुयकुसुमे इ वा पालियायकुसुमे इ वा जाइहिंगुलए ति वा सिलप्पवाले ति वा पवालअंकुरे इ वा लोहियकसमणी इ वा लक्सारमगे ति वा किमिरागकंवले ति वा चीणपिट्ठरासी ति वा रनुप्पल इ वा रनासागे ति वा रत्नकणवीर ति वा रत्नबंधुजीवे ति वा, भवेयारुवे सिया ?, णो इणटे सम8, ते णं लोहिया मणी इत्तो इट्ठतराए चेव जाव वण्णेणं पं० । तत्थ णं जे ते हालिहा मणी तेसिणं मणीणं इमेयारूवे वण्णावामे पण्णने- से जहाणामए चंपे ति वा चंपछल्ली ति वा (चंपगभेए इवा) हल्लिद्दा इ वा हलिहाभेदे ति वा हलिहगुलिया ति वा हरियालिया
अनुक्रम [१५]
अत्र शिर्षक-स्थाने मूल संपादने सूत्र-क्रम विषयक स्खलना दृश्यते-सू० १५ स्थाने सू० १४ इति मुद्रितं
सूर्याभदेवस्य दिव्ययान करणं
~69~