Book Title: Savruttik Aagam Sootraani 1 Part 15 Rajprashniya Mool evam Vrutti
Author(s): Anandsagarsuri, Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Vardhaman Jain Agam Mandir Samstha Palitana

View full book text
Previous | Next

Page 257
________________ आगम [भाग-१५] “राजप्रश्नीय” – उपांग सूत्र-२ (मूलं+वृत्तिः ) ------ मूलं [५६-६१] (१३) श्रीराजमश्नी मलयगिरीया वृत्तिः Aववाम्ब्या गमनाय विज्ञप्तिः ॥१२४॥ प्रत सूत्रांक [५६-६१] पडिरूवा णं भंते ! सेतविया नगरी, समोसरह णं भंते ! तुम्भे सेयविय नगरि, तए णं से केसीकुमारसमणे चित्तेणं सारहिणा एवं चुने समाणे चित्तस्स सारहिस्स एयमट्ठ णी आढाइ णो परिजाणाइ तुसिणीए संचिट्टइ, तए णं से चित्ते सारही केसीकुमारसमणं दोच्चपि तचंपि एवं वयासी. एवं खलु अहं भंते ! जियसत्तणा रना पएसिस्स रण्णो इमं महत्थं जाव विसजिए तं चेव जाव समोसरह णं भंते ! तुम्भे सेयवियं नगरिं, तए णं केसीकुमारसमणे चिनेण सारहिणा दापि तकचंपि एवं बुत्ते समाणे चित्तं सारहिं एवं वयासी-चित्ता! से जहानामए घणसं सिया किण्हे किण्होभासे जाव पडि सवे, से गृणं चित्ता ! से वणसं बहण दुपयचप्पयमियपमुपक्खीसिरीसिवाणं अभिगमणिज्जे १, हंता अभिगमणिज्जे, तंसि च णं चित्ता वणसंडसि बहवे भिलंगा नाम पावसउणा परिवति, जेणं तेसि बहूणं दुपयचउप्पयमियपसुपक्षीसिरीसिवाण ठियाणं चेव मंससोणिय आहा रति,से गुणं चित्ता! से वणसंडे तेसिणं बहणं दुपय जाब सिरिसिवाणं अभिगमणिज्जे, णो ति०,कम्हा णं ?, भंते ! सोवसग्गे,एवामेव चित्ता ! तुभंपि सेवियाए गयरीए एसीनाम राया परिवसइ अहम्मिए जाव णो सम्मं करभरवित्ति पवत्तहतं कह णं अहं चित्ता! सेयवियाए नगरीए समोसरिस्सामि ?,तए णं से चित्ते सारही केसि कुमारसमणं एवं वयासी-किण भंते ! तुम्भ पएसिणा रहा काय !, अस्थि णं भंते ! सेयवियाए नगरीए अन्ने दीप अनुक्रम [५६-६१] ॥१२॥ andiararam पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..आगमसूत्र- [१३], उपांगसूत्र- [२] "राजप्रश्नीय" मूलं एवं मलयगिरि-प्रणीता वृत्ति: ~257~

Loading...

Page Navigation
1 ... 255 256 257 258 259 260 261 262 263 264 265 266 267 268 269 270 271 272 273 274 275 276 277 278 279 280 281 282 283 284 285 286 287 288 289 290 291 292 293 294 295 296 297 298 299 300 301 302 303 304 305 306 307 308 309 310 311 312 313 314