Book Title: Savruttik Aagam Sootraani 1 Part 15 Rajprashniya Mool evam Vrutti
Author(s): Anandsagarsuri, Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Vardhaman Jain Agam Mandir Samstha Palitana

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Page 285
________________ आगम (१३) Thaha प्रत सूत्रांक [६७-७४] दीप अनुक्रम [६७-७४] मूलं [६७-७४] पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधितः मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित ..आगमसूत्र - [१३] उपांगसूत्र- [२] "राजप्रश्नीय" मूलं एवं मलयगिरि-प्रणीता वृत्तिः श्रीराजमश्री मलयगिरी या वृत्तिः ॥ १३८ ॥ Education i [भाग-१५] “राजप्रश्नीय” – उपांग सूत्र - २ ( मूलं + वृत्ति:) 446 उच्च एहि आउसेहि आउत्तिए उद्यावयाहि उणाहि उसिनए एवं निर्भछणाहि निच्छोडा०ि, तर णं केसीकुमारसमये पसि रायं एवं वयासी-जाणासि णं तुमं परसी । कति परिसाओ पण्णताओ, भंते जाणानि चंत्तारि परिसाओ पष्णता, तजहा खतियपरिसा गाहाइपरसा माणपरिसा इसिपरिसा, जाणासि णं तुमं पएसी राया। एयासि च उण्ह परिसार्ण कस्स का दंडणी पणा, हंता ! जाणामि जे णं खतियपरिसाए अवरझ से णं हत्थच्छिषणएवा पायच्छिए. बा. सीसच्छिण्णए वा सलाइए वा एगाहचे कूटाहचे जीवियाओ ववरोविजड़, जेण गाहायहपरिसाए अवरज्झइ से णं तरण वा वेढेण वा पलालेण वा वेडित्ता अगणिकाएवं शामिल, जेणं माहणपरिसाए अवरज्झइ से णं अणिहाहिं अकताहिं जाव अमणामाहि हि उवालभित्ता कुंडियालंछणए वा सुणगहणए वा कीरइ निव्विसए वा आणविजह, जे णं इसिपरिसrr अवरज्झइ से णं णाइअणिट्ठाहिं जाव णाइअमणामाहिं वरमूहि उपालम्भइ, एवं च ताव परसी ! तुमं जाणासि तहावि णं तुमं ममं वाम वामेणं दंड देणं पडिकूलं पटिकूलेणं पडिलोमं पडिलोमेगं विवश्वास विवद्यासेणं वट्टसि. तर णं परसी राया केसि कुमारसमण एवं व यासी एवं खलु अहं देवाणुप्पिएहिं पढमिल्लुएगं चैव वागरणं संलते तर णं ममं इमेयास्वे अथिए जाव संकप्पे समुपजित्था, जहा जहा णं एयस्स पुरिसस्स वामं वामेण जाव विवचासं केसिकुमार श्रमणं सार्धं प्रदेशी राजस्य धर्म-चर्चा For Parts Only ~285~ 69-4404 यया पयेवू तथा द व्यवहारोच सू. ७२ ।।। १३८ ।। narr

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