Book Title: Savruttik Aagam Sootraani 1 Part 15 Rajprashniya Mool evam Vrutti
Author(s): Anandsagarsuri, Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Vardhaman Jain Agam Mandir Samstha Palitana
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आगम
(१३)
प्रत सूत्रांक [७५-८०]
[भाग-१५] “राजप्रश्नीय” – उपांग सूत्र-२ (मूलं+वृत्ति:)
---------- मूलं [७५-८०] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..आगमसूत्र- [१३], उपांगसूत्र- [२] “राजप्रश्नीय" मूलं एवं मलयगिरि-प्रणीता वृत्ति: बीराजमना
- अयोज्ञात मलयगिरी
गरं पासंति, अएणं सहतो समता आइपणं विच्छिष्ण सच्छड उवच्छडं फुड गाढ अवगाढ पासंति या वृत्तिः
२त्ताहतुट्ट जावहियया अन्नमन्नं सहाति २ ता एवं वयासी-एस णं देवाणुप्पिया! अयभने १४२॥ इट्टे कंते जाच मणामे, ते सेयं खलु देवाणुप्पिया! अम्ह अयभारए चंधित्तएत्तिकहु अन्नमन्नस्स
एयम? परिसुणेतिर अयभार बंधति र अहाणुपुटीए संपत्थिया, तए णं ते पुरिसा अकामियाए जाव अडवीए किंचि देसं अणुपत्ता समाणा एग महं तउआगरं पासंति, तउएण आइण्णं तंचेव जाच सहायता एवं वयासी-एसणं देवाणुप्पिया! तज्यभंडे जाव मणामे, अप्पेणं चेय तउएणं सुबई अए भति, तं सेयं खलु देवाणुप्पिया! अयभारए छड्डेचा तज्यभारए पंधिएसिक अमरस अंतिए एयमट्ठ पडिमुणेति २चा अयभार छउँति २त्ता तज्यभारं बंधति, तस्थ णं एगे पुारसे जो संचाएइ अयभारं छत्तए तउयभार पंधित्तए, तए णं ते पुरिसा ते पुरिसं एवं व्यासी-एसणं देवाणुप्पिया! तउयभंडे जाव सुबहुं अए लब्भति, तं छडेहि णं देवाणुप्पिया! अयभारगं, उपभारगं बंधाहि, तए णं से पुरिसे एवं वदासी-दूराहटे मे देवाणुप्पिया ! अए चिराहने में देवाणु पिया! अए अइगाढबंधणय मे देवाणुप्पिया! अए असिलिट्ठबंधणबद्ध देवाणुप्पिया! अएपणियबंधणबहे देवाणुप्पिया! अए, णो संचाएमि अग्रभारगण्डेत्ता तउयभारगं
M॥१४१॥ बंधितए ।लए ण ते पुरिसा तं पुरिसं जाहे जो संचायति बहहिं आघवणाहि य पन्नवणाहि य
दीप
अनुक्रम [७५-८०]
केसिकुमार श्रमणं साधं प्रदेशी राजस्य धर्म-चर्चा
~291

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