Book Title: Savruttik Aagam Sootraani 1 Part 15 Rajprashniya Mool evam Vrutti
Author(s): Anandsagarsuri, Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Vardhaman Jain Agam Mandir Samstha Palitana

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Page 283
________________ आगम (१३) [भाग-१५] “राजप्रश्नीय” – उपांग सूत्र-२ (मूलं+वृत्तिः ) ------------- मूल [६७-७४] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..आगमसूत्र- [१३], उपांगसूत्र- [२] “राजप्रश्नीय" मूलं एवं मलयगिरि-प्रणीता वृत्ति: श्रीराजप्रश्नो मलयगिरीया वृत्तिः जीवनमृतयो तुलावा व स्ति: छेदेदर्शने च प्रत *ज्योतिः सूत्रांक न.७०-२ [६७-७४] प्पिया! कहाणं अडवि पविसामो, एत्तो णं तुम जोइभायणाओ जोई गहाय अम्हं असणं साहेजासि, अह तं जोइभायणे जोई विज्झवेजा एतो गं तुम कट्ठाओ जोइं गहाय अम्हं असणं साहेज्जासित्तिकट कट्ठाणं अडवि अणुपविहा, तए णं से पुरिसे तओ मुहत्तन्तरस्स तेसि पुरिसाणं असणं साहेमित्तिक जेणेव जोतिभायणे तेणेव उवागच्छद जोइभायणे जोई विज्झायमेव पासति, तए णं से पुरिसे जेणेव से कडे तेणेव उवागच्छद उवागच्छित्ता तं कट्टै सवओ समंता समभिलोएति नो चेवणं तस्य जोई पासति, तए णं से पुरिसे परियरं बंधइ फरमुं गिण्हा तं क दहा फालियं करेइ सब्यतो समंता समभिलोएइ णो चेव णं तस्य जोई पासइ, एवं जाव संखेजफालियं करेइ सवतो समंता समभिलोएइ नो चेव णं तस्य जोई पासह, तए णं से पुरिसे तैसि कहंसि दुहाफालिए वा जाव संखेजफालिए वा जोई अपासमाणे संते तंते परिसंते निश्विपणे समाणे परसुं पगते एबेइ २ परियरं मुयइ २ एवं वयासी-अहो! मए तेसिं पुरिसाणं असणे नो साहिएत्तिक ओहयमणसंकप्पे चितासोगसागरसंपबिहे करयलपालस्थमुहे अहज्माणोचगए मूमिगयदिहिए झियाइ, तए ण ते पुरिसा कट्ठाई छिदेति २त्तो जेणेव से पुरिसे तेणेव उषागईतिश्ती से पेरिस ओहयमणसंकप्प जाव झियायमाणं पासति २त्ता एवं बयासी-किम्मै तुम देवाणुपिया! ओहयमणसंकप्पे जाव सिधायसि,प्तए णं से पुरिसे एवं पयासी-तुस्से में दीप अनुक्रम [६७-७४] ॥ १३७॥ SARELatini L asaram.org केसिकुमार श्रमणं साधं प्रदेशी राज्ञस्य धर्म-चर्चा ~283~

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